हिमाचल प्रदेश सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए ही नहीं, बल्कि प्राचीन लोक परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत के लिए भी दुनियाभर में मशहूर है। इन्हीं परंपराओं में से एक है- ‘बूढ़ी दीवाली’। बीती रात हजारों लोगों ने पूरे जोश और उत्साह के साथ ममलेश्वर महादेव मंदिर में धूमधाम से बूढ़ी दिवाली मनाई है।
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मंडी जिले के करसोग में बने ममलेश्वर महादेव मंदिर में दीपावली के एक महीने बाद अमावस्या को ये त्योहार मनाया जाता है। बीती रात लोगों ने बड़े ही उत्साह के साथ ‘बूढ़ी दीवाली’ मनाई। मशालें लेकर भक्तों ने ढोल की थाप पर डांस किया। कई लोग लोक संगीत पर थिरकते नजर आए। इस दौरान श्रद्धालुओं ने शानदार रथ जुलूस भी निकाला, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।
स्थानीय समुदाय की भक्ति ने त्योहार को और भी यादगार बना दिया। कई लोग ऐसे थे जो पहली बार ‘बूढ़ी दिवाली’ देखने आए थे। दिवाली के एक महीने बाद मनाए जाने वाले इस त्योहार को लेकर लोगों के मन में गहरी आस्था है। स्थानीय लोग बताते हैं कि ‘बूढ़ी दीवाली’ को वो बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं।
ममलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी बताते हैं कि ‘बूढ़ी दीवाली’ की ये परंपरा यहां सदियों से चली आ रही है। इसे मार्गशीर्ष महीने में कृष्ण पक्ष की रात को मनाया जाता है। करसोग के ममलेश्वर महादेव का इतिहास लगभग पांच हजार वर्ष पुराना है। कहते हैं इसका महाभारत काल से गहरा नाता है। मान्यता है कि भीम ने इस इलाके में एक राक्षस को हराया था और पांडवों की जलाई हुई अखंड ज्योति आज भी मंदिर में जल रही है।
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जबकि स्थानीय लोगों का कहना है कि 14 साल का वनवास पूरा करने के बाद प्रभू श्री राम के अयोध्या पहुंचने का समाचार यहां लोगों को एक महीने बाद मिला था। तब से लोग यहां हर साल ‘बूढ़ी दिवाली’ मनाते आ रहे हैं। स्थानीय लोगों के साथ-साथ यहां आने वाले हजारों भक्तों के लिए ‘बूढ़ी दिवाली’ पूजा-पाठ, संगीत और उत्साह से बढ़कर करसोग की आस्था, परंपरा और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
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