Delhi: सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार 18 सितंबर को कर्नाटक सरकार द्वारा इस वर्ष मैसूर दशहरा के उद्घाटन के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता बानू मुश्ताक को आमंत्रित करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए जताई है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ से अपील की कि ये उत्सव 22 सितंबर से शुरू होगा और इस मामले की तत्काल सुनवाई जरूरी है। एक वकील ने तत्काल सुनवाई की मांग करते हुए कहा, “कर्नाटक के मैसूर मंदिर में 22 सितंबर को एक गैर-हिंदू को अग्रेश्वरी पूजा करने की इजाजत दी गई है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ठीक है। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 15 सितंबर को ‘मैसूर दशहरा’ उत्सव के उद्घाटन के लिए मुश्ताक को आमंत्रित करने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया।
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उच्च न्यायालय ने मैसूर के पूर्व बीजेपी सांसद प्रताप सिम्हा की ओर से दायर याचिका सहित चार जनहित याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता किसी भी संवैधानिक या कानूनी उल्लंघन को साबित करने में विफल रहे। उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील एचएस गौरव ने शीर्ष अदालत में दायर की थी, जिसमें उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें 22 सितंबर, 2025 को होने वाले दशहरा उत्सव के उद्घाटन के लिए एक महिला मुस्लिम गणमान्य व्यक्ति मुश्ताक को आमंत्रित करने के राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखा गया था। याचिका में उच्च न्यायालय के तर्क की आलोचना करते हुए कहा गया था कि चामुंडी पहाड़ियों के ऊपर स्थित चामुंडेश्वरी मंदिर में होने वाले दशहरा के उद्घाटन अनुष्ठान केवल प्रतीकात्मक नहीं हैं, बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित एक आवश्यक धार्मिक प्रथा का गठन करते हैं। Delhi
उद्घाटन में देवी चामुंडेश्वरी के गर्भगृह के समक्ष दीप प्रज्वलित करना, कुमकुम, हल्दी, फल और फूल चढ़ाना शामिल है। याचिका के अनुसार ये हिंदू पूजा के कार्य हैं, जो आगमिक परंपराओं द्वारा शासित हैं और इन्हें किसी गैर-हिंदू द्वारा नहीं किया जा सकता। याचिका में कहा गया है, उच्च न्यायालय ने गलत तरीके से यह माना है कि राज्य प्रायोजित दशहरा उत्सव के उद्घाटन के लिए श्रीमती बानो मुश्ताक को आमंत्रित करके याचिकाकर्ताओं के किसी कानूनी या संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है और किसी विशेष धर्म या आस्था को मानने वाले व्यक्ति द्वारा अन्य धर्म के त्योहारों में भाग लेना संविधान प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। याचिका में कहा गया है, उच्च न्यायालय ने इस तथ्य को न समझकर गलती की है कि देवी चामुंडेश्वरी मंदिर परिसर में दशहरा के उद्घाटन के लिए एक पूजा की जानी चाहिए जो किसी गैर-हिंदू द्वारा नहीं की जा सकती।
इसमें कहा गया है कि ‘पूजा’ हिंदू भक्ति और रीति-रिवाजों के अनुसार की जानी चाहिए और यह पूजा दशहरा उत्सव के पारंपरिक दस दिवसीय समारोह का उद्घाटन है। उन्होंने कहा, “उच्च न्यायालय ने इस तथ्य को न समझकर गलती की है कि कर्नाटक सरकार द्वारा आमंत्रित मुख्य अतिथि श्रीमती बानू मुश्ताक मुस्लिम समुदाय से हैं और इसलिए गैर-हिंदू हैं। इसलिए, वह देवता के समक्ष अनुष्ठान नहीं कर सकतीं, जो स्थापित हिंदू धार्मिक और औपचारिक प्रथाओं के विरुद्ध है। Delhi
उच्च न्यायालय ने जनहित याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता किसी भी संवैधानिक या कानूनी उल्लंघन को साबित करने में विफल रहे। उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा, हम ये मानने के लिए राजी नहीं हैं कि किसी अन्य धर्म के व्यक्ति द्वारा राज्य द्वारा आयोजित किसी समारोह का उद्घाटन करना याचिकाकर्ताओं के किसी कानूनी या संवैधानिक अधिकार या संविधान में निहित किसी भी मूल्य का उल्लंघन होगा। याचिकाएं खारिज की जाती हैं।
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विपक्षी बीजेपी समेत कुछ वर्गों की आपत्तियों के बावजूद मैसूर जिला प्रशासन ने तीन सितंबर को मुश्ताक को औपचारिक रूप से आमंत्रित किया। ये विवाद उन आरोपों से उपजा है कि मुश्ताक ने अतीत में ऐसे बयान दिए हैं जिन्हें कुछ लोग “हिंदू-विरोधी” और “कन्नड़-विरोधी” मानते हैं। मैसूर में उत्सव 22 सितंबर से शुरू होगा और 2 अक्टूबर को ‘विजयादशमी’ पर समाप्त होगा। दशहरा का उद्घाटन पारंपरिक रूप से चामुंडेश्वरी मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मैसूर और उसके राजघरानों की अधिष्ठात्री देवी चामुंडेश्वरी की मूर्ति पर पुष्प वर्षा करके किया जाता है।