Supreme Court: सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम में संशोधन करने पर विचार करने को कहा है ताकि अपराधियों द्वारा जबरन तेजाब पिलाए जाने के बाद गंभीर आंतरिक चोटों से पीड़ित लोगों को भी “विकलांग” की श्रेणी में शामिल किया जा सके और उन्हें कानून के तहत कल्याणकारी उपायों का लाभ मिल सके। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने चार दिसंबर को सभी उच्च न्यायालयों की रजिस्ट्रियों को अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में लंबित तेजाब हमले के मामलों का विवरण पेश करने का आदेश दिया था। Supreme Court
इस पीठ ने शाहीन मलिक द्वारा दायर एक जनहित याचिका में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पक्षकार बनाया है। खुद शाहीन मलिक तेजाब हमले की शिकार हैं। मलिक कानून के तहत विकलांग व्यक्तियों की परिभाषा का विस्तार चाहती हैं ताकि ये तय किया जा सके कि जबरन तेजाब पिलाए जाने के कारण अपने आंतरिक अंगों को जानलेवा क्षति झेलने वाले पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा और चिकित्सा देखभाल सहित अन्य राहतें मिल सकें। केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार कानून में बदलाव पर विचार करने को तैयार है, क्योंकि उन्हें खुद इस अपराध के उस पहलू की जानकारी नहीं थी, जिसमें पीड़ितों को जबरन तेजाब पिलाया जाता है।
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सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि तेजाब फेंकने से होने वाली चोटें कानून द्वारा मान्यता प्राप्त हैं और जबरन तेजाब पिलाने और उससे आंतरिक अंगों को होने वाले नुकसान के इस पहलू पर विचार किया जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि ये एक “पशुवत व्यवहार” है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि केवल प्रावधान में एक स्पष्टीकरण जोड़ने से काम चल जाएगा। उन्होंने जनहित याचिका याचिकाकर्ता के वकील से कानून में मांगे गए बदलावों को स्पष्ट करते हुए एक संक्षिप्त नोट शीर्ष विधि अधिकारी को विचार के लिए भेजने को कहा।
ये बताए जाने पर कि तेजाब हमले के जिन पीड़ितों को जबरन तेजाब पिलाया जाता है, उन्हें राज्य सरकारों से तीन लाख रुपये से अधिक का मुआवजा नहीं मिलता है, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वो इस पहलू पर गौर करेंगे। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हालांकि राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) की योजनाएं अच्छा काम कर रही हैं, फिर भी वह देखेंगे कि क्या इसके द्वारा दिए जा रहे मुआवजे को बढ़ाया जा सकता है। Supreme Court
