Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश के लाखों सेब उत्पादकों को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 16 दिसंबर को हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें अतिक्रमित वन भूमि से फलदार बागों को हटाने का निर्देश दिया गया था और राज्य सरकार को हाशिये पर पड़े वर्ग और भूमिहीन लोगों की सहायता के लिए केंद्र को एक प्रस्ताव तैयार करने को कहा था।
प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने आदेश पारित करने में गलती की है, जिसके समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्ग और क्षेत्र के भूमिहीन लोगों पर बहुत गंभीर परिणाम होंगे। इसने कहा कि यह मुद्दा नीतिगत दायरे में आता है और हाई कोर्ट को ऐसा आदेश पारित नहीं करना चाहिए था जिससे फलदार पेड़ों की कटाई सुनिश्चित हो सके।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वन भूमि पर अतिक्रमण के संबंध में राज्य सरकार कार्रवाई कर सकती है। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार कल्याणकारी राज्य के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए एक प्रस्ताव तैयार कर सकती है और आवश्यक अनुपालन के लिए इसे केंद्र के समक्ष रख सकती है। उच्चतम न्यायालय राज्य सरकार की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। इसके अलावा, पूर्व उप महापौर टिकेंद्र सिंह पंवार और कार्यकर्ता राजीव राय (एक वकील) की याचिकाओं पर भी सुनवाई हो रही थी।
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हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादकों को राहत प्रदान करते हुए उच्चतम न्यायालय ने 28 जुलाई को अतिक्रमित वन भूमि से फलदार सेब के बागों को हटाने संबंधी उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी…. याचिकाकर्ता ने कहा था कि उच्च न्यायालय ने दो जुलाई को वन विभाग को सेब के बागों को हटाने और उनकी जगह वन पौधों की प्रजातियां लगाने और अतिक्रमणकारियों से भू-राजस्व के बकाया के रूप में इसकी लागत वसूलने का आदेश दिया था….
याचिकाकर्ता का कहना है कि उक्त आदेश मनमानापूर्ण एवं असंगत तथा संवैधानिक, वैधानिक और पर्यावरणीय सिद्धांतों के विरूद्ध है, जिसके कारण पारिस्थितिकी दृष्टि से नाजुक हिमाचल प्रदेश में अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक एवं सामाजिक-आर्थिक नुकसान को रोकने के लिए शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप की जरूरत है। इसमें कहा गया है, ‘‘सेब के बाग महज अतिक्रमण नहीं हैं, बल्कि ये मृदा स्थिरता में योगदान देते हैं, स्थानीय वन्यजीवों के लिए आवास उपलब्ध कराते हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं तथा हजारों किसानों की आजीविका को सहारा देते हैं।
