(अवैस उस्मानी):आप पार्टी सांसद राघव चड्ढा के राज्यसभा से निलंबन को चुनौती देने का मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान राघव चड्डा के वकील ने कहा कि राघव चड्ढा मामले में बिना शर्त माफी मांगने के लिए तैयार है। उनका मकसद सदन की गरिमा को कम करने का नही था। सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि प्रिविलेज कमेटी की बैठक आज होनी है। सुप्रीम कोर्ट ने राघव चड्डा से कहा कि वह राज्यसभा सभापति से मिले और उनसे बिना शर्त माँगी मांगे। सभापति यह देखते हुए कि राघव चड्ढा सबसे कम उम्र के सांसद हैं और पहली बार सांसद बने हैं उनके निलंबन पर सहानुभूति पूर्ण तरीके से विचार कर सकते हैं ताकि राघव चड्डा के निलंबन को खत्म होने का रास्ता निकाल सके।
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मुख्य न्यायधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ में सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि राघव चड्ढा प्रतिष्ठित सदन के सबसे कम उम्र के सदस्य हैं। उनका सदन की गरिमा पर हमला करने का कोई इरादा नहीं था। सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया गया कि राघव चड्ढा सभापति से मिलेंगे और बिना शर्त माफी मांगेंगे जिस पर सदन के तथ्यों और परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई दीवाली के बाद होगी।
पिछली सुनवाई में राघव चड्ढा की याचिका पर सुनवाई के दौरान आटॉर्नी जनरल ने कहा कि इस मामले में कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता, यह पार्लियामेंट के अधिकार क्षेत्र में आता है। राघव चढ्ढा के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि राघव चड्ढा 60 दिन तक अगर हाऊस में नहीं गए तो सीट खाली घोषित हो सकती है। राघव चड्ढा के वकील ने कहा ऐसे में कैसे अनिश्चित काल तक सांसद को सस्पेंड किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने AAP सांसद राघव चड्ढा के राज्यसभा से निलबंन पर सवाल उठाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 75 दिन पहले ही गुजर चुके है, अनिश्चित काल तक निलबंन चिन्ता का विषय है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा राघव चड्डा सदन में विपक्ष की आवाज़ की नुमाइंदगी करते है, सदन में ऐसी आवाज़ का प्रतिनिधित्व बना रहे, इसको लेकर हमे सतर्क रहना चाहिए।सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या राघव चड्डा माफी मंगाने को तैयार है। राघव चढ्ढा ने राज्यसभा से अपने निलंबन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। अगस्त में राघव चड्ढा को निलंबित किया गया था। राघव की तरफ से दलील दी गई है कि उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का मामला नहीं बनता है। अगर मामला बनता भी है, तो नियम 256 के तहत उन्हें सिर्फ उसी सत्र तक के लिए निलंबित किया जा सकता था। मामला अभी संसद की विशेषाधिकार कमिटी के पास है।
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