Bihar: बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन प्रक्रिया को लेकर चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार यानी की आज 12 अगस्त को सुनवाई के दौरान इसे “मुख्य रूप से विश्वास की कमी का मामला” करार दिया। चुनाव आयोग ने अदालत को बताया कि राज्य के लगभग 7.9 करोड़ मतदाताओं में से करीब 6.5 करोड़ लोगों को किसी दस्तावेज की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि उनके या उनके माता-पिता के नाम 2003 की मतदाता सूची में पहले से ही दर्ज थे।
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जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ इस मामले में सुनवाई कर रही है। पीठ ने याचिकाकर्ता और आरजेडी नेता मनोज झा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से कहा कि अगर 7.9 करोड़ में से 7.24 करोड़ लोगों ने SIR का जवाब दिया, तो यह एक करोड़ लोगों के नाम हटाने के तर्क को कमजोर करता है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के इस निर्णय से भी सहमति जताई कि आधार और वोटर आईडी कार्ड को नागरिकता का अंतिम प्रमाण नहीं माना जा सकता, जब तक अन्य दस्तावेजों से उसका समर्थन न हो। Bihar
इस पर कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि आधार, राशन और ईपीआईसी कार्ड होने के बावजूद अधिकारियों ने दस्तावेजों को नहीं माना। अदालत ने जवाब में कहा कि क्या आप यह कहना चाह रहे हैं कि जिनके पास कोई दस्तावेज नहीं है, सिर्फ बिहार में रहने से वह मतदाता मान लिए जाएं? दस्तावेज दिखाने होंगे। जब सिब्बल ने कहा कि लोग अपने या अपने माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र नहीं ढूंढ पा रहे, तो जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, यह कहना कि बिहार में किसी के पास कोई दस्तावेज नहीं है, बहुत बड़ी बात है। अगर ऐसा बिहार में हो रहा है तो देश के बाकी हिस्सों का क्या होगा?
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और प्रशांत भूषण ने चुनाव आयोग की समयसीमा और 65 लाख मतदाताओं के “मृत”, “प्रवासी” या अन्य क्षेत्रों में दर्ज होने के आंकड़ों पर सवाल उठाए। राजनीतिक कार्यकर्ता योगेन्द्र यादव, जो स्वयं कोर्ट में मौजूद हुए, ने ईसी के आंकड़ों पर सवाल उठाते हुए कहा कि राज्य की वयस्क जनसंख्या 8.18 करोड़ है, और एसआईआर की मंशा मतदाताओं को हटाने की है। उन्होंने आरोप लगाया कि बूथ लेवल अधिकारियों ने सिर्फ नाम हटाने पर ध्यान दिया, नाम जोड़ने की प्रक्रिया नहीं हुई। सिब्बल ने उदाहरण देते हुए कहा कि एक क्षेत्र में 12 लोग मृत घोषित किए गए थे, जो जीवित पाए गए और दूसरे क्षेत्र में जीवित व्यक्तियों को मृत घोषित कर दिया गया।
इसके जवाब में आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह ड्राफ्ट सूची है और ऐसे “छोटे-मोटे दोष” स्वाभाविक हैं, जिन्हें अंतिम सूची से पहले सुधार लिया जाएगा। सुनवाई की शुरुआत में ही सुप्रीम कोर्ट ने ईसी से कहा कि वो सभी आंकड़ों के साथ तैयार रहे — जैसे कि संशोधन से पहले मतदाताओं की संख्या, मृतक मतदाताओं का डेटा आदि। सुनवाई अब बुधवार को जारी रहेगी। इससे पहले 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, लेकिन अगर एसआईआर के दौरान बड़े पैमाने पर किसी की मताधिकार से वंचित करने की बात सामने आती है, तो अदालत हस्तक्षेप करेगी। Bihar
ड्राफ्ट मतदाता सूची एक अगस्त को जारी की जा चुकी है और अंतिम सूची 30 सितंबर को प्रकाशित की जानी है। विपक्षी दलों का आरोप है कि इस प्रक्रिया के जरिए करोड़ों लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। 10 जुलाई को कोर्ट ने ईसी को आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को वैध मानने पर विचार करने को कहा था, साथ ही एसआईआर प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति दी थी। चुनाव आयोग ने कोर्ट में कहा कि यह प्रक्रिया “अयोग्य मतदाताओं को हटाकर चुनाव की शुद्धता बनाए रखने” के उद्देश्य से की जा रही है। Bihar
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इस मामले में आरजेडी सांसद मनोज झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल, एनसीपी की सुप्रिया सुले, सीपीआई के डी. राजा, एसपी के हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (उद्धव) के अरविंद सावंत, जेएमएम के सरफराज अहमद और सीपीआई (एमएल) के दीपांकर भट्टाचार्य सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। इसके अलावा पीयूसीएल, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और योगेन्द्र यादव जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों ने भी याचिकाएं दायर की हैं।
