नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली तो ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली देवी।
मां का यह रूप बेहद शांत और मोहक माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है।
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मां ब्रह्मचारिणी के स्वरूप की बात करें तो उन्होंने श्वेत वस्त्र धारण किया हुआ है और उनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल है।
देवी ब्रह्मचारिणी का यह रूप बिल्कुल सौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाला है। शास्त्रों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी ने राजा हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी, इसी कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
दूसरे दिन सुबह उठकर नित्यकर्म और नहाने के बाद सफेद अथवा पीले रंग का कपड़े धारण करें, इसके बाद पूजा घर की साफ सफाई कर नवरात्र के लिए स्थापित किए गए कलश में मां ब्रह्मचारिणी का आह्वान करें।
मां को सफ़ेद रंग की पूजन सामग्री मिश्री, शक्कर या पंचामृत अर्पित करें, घी का दिया जलाकर मां की प्रार्थना करें। दूध, दही, चीनी, घी और शहद का घोल बनाकर मां को स्नान करवाएं।
मां की पूजा करें और उन्हें पुष्प, रोली, चन्दन और अक्षत अर्पित करें, इसके बाद बाएं हाथ से आचमन लेकर दाएं हाथ पर लेकर इसके ग्रहण करें।
हाथ में सुपारी और पान लेकर संकल्प लें, इसके बाद नवरात्र के लिए स्थापित कलश और मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। मां को सफेद और सुगंधित फूल अर्पित करें, कमल का फूल देवी मां को बेहद प्रिय है।
घी और कपूर मिलाकर देवी मां की आरती करें, मां के मंत्रों का जाप करें। मां ब्रह्मचारिणी को दूध से बने व्यंजन और शक्कर का भोग प्रिय है, मां को शक्कर का भोग लगाने से परिजनों की आयु में वृद्बि होती है।
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