Climate Change: अगर हम कहें की हीरा सिर्फ ज्वैलरी के लिए ही नहीं बल्की पृथ्वी के तापमान को कंट्रोल करने के लिए काम आने वाला है तो शायद आपको थोड़ा अटपटा लग सकता है। लेकिन वैज्ञानिकों ने लगातार गर्म हो रही पृथ्वी को ठंडा करने के लिए हीरे को ही चुना है, वो कैसे आइए जानते हैं।
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पृथ्वी लगातार गर्म हो रही है इसका अंदाजा इस साल की गर्मी से ही लगाया जा सकता है। रिकॉड तोड़ गर्मी से अगर कोई सबसे ज्यादा परेशान है तो वो हैं हमारे वैज्ञानिक, वो लगातार प्रयास कर रहे हैं कि उन सभी ह्यूमन एक्शन पर लगाम लगाई जाए, जिससे ग्लोबल वार्मिंग हो रही है। इसके लिए एक समाधान जियोइंजीनियरिंग है, जैसे गर्मी के दिनों में जमीन ठंडा करने के लिए लोग पानी का छीड़काव करके धरती नर्म करते हैं वैसे ही वैज्ञानिक अब वायुमंडल में हीरे का छिड़काव करेंगे।
वैज्ञानिकों का मानना है कि हीरे की धूल यानी डस्ट से या फिर कई और कंपाउंड के वायुमंडल में छिड़काव से सूर्य से आने वाली रेडिएशन को वापस अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है, जिससे पृथ्वी पर तापमान में कमी आ सकती है। इस टेकनिक को सोलर रेडिएशन मैनेजमेंट कहा जाता है। इसमें सूर्य की किरणों को पृथ्वी तक पहुंचने से रोका जाता है। इस प्रकार के समाधान को आम तौर पर जियो-इंजीनियरिंग कहा जाता है, इसमें वायुमंडलीय प्रोसेस को कंट्रोल करके पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान किया जाता है।
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अब बात आती है कि हीरे की धूल ही क्यों तो बता दें रिसर्च में ये पाया गया है कि हीरे की धूल इस काम को बाकी के कंपाउंड्स से ज्यादा इफेक्टिव तरीके से कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि वैज्ञानिकों ने पहले किसी और कंपाउंड पर विचार नहीं किया। पहले भी सल्फर, कैल्शियम के साथ ही और भी कई कंपाउंड्स पर विचार किए जा चुके हैं लेकिन वे ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं थे। वहीं बाकी कंपाउंड्स की तुलना में हीरे की धूल को सबसे ज्यादा इफेक्टिव पाया गया है। रिसर्च में भी ये दावा किया गया है कि हीरे की धूल के इस्तेमाल से 1.6 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में कमी हासिल की जा सकती है। लेकिन इसके लिए हर साल करीब पांच मिलियन टन हीरे की धूल को वायुमंडल में छिड़कना होगा। जिसको करने में बड़ी टेक्नोलॉजी और बजट संबंधी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है।
