Crime News: एक सत्र अदालत ने सोमवार यानी की कल 20 जनवरी को पूर्व IAS अधिकारी प्रदीप शर्मा को भ्रष्टाचार के एक मामले में पांच साल की जेल और 75,000 रुपये का जुर्माना लगाया। यह मामला 2004 का है, जब वह गुजरात में कच्छ के जिलाधिकारी थे।
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बता दें, प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश के.एम. सोजित्रा की अदालत ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) द्वारा दर्ज एक मामले में उन्हें दोषी ठहराया। यह मामला वेलस्पन समूह को एक भूखंड आवंटित करने से संबंधित है, जिससे कथित तौर पर सरकारी खजाने को 1.2 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। अदालत ने शर्मा को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (2) (लोक सेवक द्वारा आपराधिक कदाचार) और धारा 11 (लोक सेवकों द्वारा बिना विचार किए अनुचित लाभ प्राप्त करना) के तहत दोषी पाया। सरकारी वकील कल्पेश गोस्वामी ने बताया कि उन्हें धारा 13(2) के तहत पांच साल की जेल और 50,000 रुपये का जुर्माना तथा धारा 11 के तहत तीन साल की जेल और 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
उन्होंने कहा कि दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी। शर्मा वर्तमान में भ्रष्टाचार के एक अन्य मामले में भुज की जेल में बंद हैं। गोस्वामी ने बताया कि अदालत ने वेलस्पन समूह को भूमि आवंटन से संबंधित भ्रष्टाचार के तीन मामलों में संयुक्त सुनवाई की। मामले के विवरण के अनुसार, शर्मा ने कंपनी को प्रचलित कीमत के 25 प्रतिशत मूल्य पर भूमि आवंटित की थी, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ। बदले में, वेलस्पन समूह ने शर्मा की पत्नी को अपनी एक सहायक कंपनी वैल्यू पैकेजिंग में 30 प्रतिशत की भागीदार बना दिया और उन्हें 29.5 लाख रुपये का लाभ पहुंचाया। शर्मा को 2004 में कच्छ का कलेक्टर रहने के दौरान निजी कंपनी से 29 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में एसीबी ने 30 सितंबर 2014 को गिरफ्तार किया था। भ्रष्टाचार के कई मामलों का सामना कर रहे शर्मा का राज्य सरकार के साथ उस समय टकराव चल रहा था।
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जब राज्य की कमान नरेन्द्र मोदी के हाथों में थी। दो समाचार पोर्टलों द्वारा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (जो उस समय गुजरात के गृह राज्य मंत्री थे) और राज्य के दो शीर्ष पुलिस अधिकारियों के बीच कथित टेलीफोन बातचीत की सीडी जारी करने के बाद उन्होंने एक महिला आर्किटेक्ट पर कथित जासूसी की सीबीआई जांच की मांग की थी। अगस्त और सितंबर 2009 के बीच कथित तौर पर हुई बातचीत में एक ‘साहेब’ का जिक्र था, जिसके बारे में पोर्टलों ने आरोप लगाया था कि वह तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री थे, जिनके कहने पर जासूसी की गई थी, हालांकि शाह ने इस आरोप से इनकार किया था।