(प्रदीप कुमार )- यूपीए सरकार में वित्त मंत्री रहे पी.चिंदबरम ने बयान जारी कर कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा जारी किया गया श्वेत पत्र दुर्भावनापूर्ण रूप से की गई एक अनुचित आलोचना है। यह एक सफ़ेद-झूठ का पत्र है। इसके लेखक भी यह दावा नहीं करेंगे कि यह एक अकादमिक, अच्छी तरह से शोध किया गया या विद्वतापूर्ण दस्तावेज है। यह एक राजनीतिक कवायद है जिसका उद्देश्य पिछली सरकार को धिक्कारना और वर्तमान सरकार के तोड़े गए वादों, भारी विफलताओं और ग़रीबों के साथ किए विश्वासघात को छिपाना है।
पूर्व वित्त मंत्री ने आगे कहा कि किसी भी अवधि का उचित और निष्पक्ष मूल्यांकन मनमाने ढंग से 2004 से शुरू नहीं होगा और 2014 में अचानक समाप्त नहीं होगा। इसके लिए 2004 से पहले और 2014 के बाद की एक उचित अवधि को शामिल किया जाना चाहिए था। 8 फ़रवरी को जारी किया गया पेपर कोई श्वेत पत्र नहीं है; यह एक ऐसा पेपर है जिसका उद्देश्य पिछले 10 वर्षों में एनडीए सरकार के कई पापों और कमियों की लीपापोती करना है। तथाकथित श्वेत पत्र का उपयुक्त उत्तर ’10 साल, अन्याय काल, 2014-2024′ शीर्षक वाला आलोचनात्मक दस्तावेज़ है। मैं आपसे उस दस्तावेज़ को पढ़ने का आग्रह करता हूं।
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पी चिदंबरम ने कहा है कि सत्ता संभालने के बाद किसी भी सरकार ने नरेंद्र मोदी सरकार की तरह बिना सोचे-समझे वादे करने और बिना खेद व्यक्त किए उन्हें तोड़ने का काम नहीं किया। यहाँ तक कि सरकार ने स्वयं उन्हें चुनावी जुमला कहकर हंसी में उड़ा दिया। इनमें से कुछ हैं:
• हर वर्ष 2 करोड़ नौकरियां
• 100 दिनों में विदेशों में जमा काला धन वापस लाना
• हर नागरिक के बैंक खाते में 15 लाख रु डालना
• पेट्रोल, डीज़ल 35 रुपए प्रति लीटर
• किसानों की आय दोगुनी होगी
• 2023-24 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना
• हर परिवार को 2022 तक घर
• 2022 तक 100 स्मार्ट सिटी
2004 में यूपीए सरकार को एक ऐसी अर्थव्यवस्था विरासत में मिली थी जिसका प्रदर्शन पिछले 6 वर्षों में औसत से कम रहा था। फिर भी वाजपेयी सरकार ने उस समय को ‘इंडिया शाइनिंग’ कहा था। यह नारा सरकार पर भारी पड़ा। भाजपा सरकार को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा। सफ़ेद-झूठ पत्र के लेखकों को यह एहसास हो सकता है कि इतिहास खुद को दोहराता है।
हर सरकार पिछली सरकार/सरकारों के काम से प्रभावित होती है। उदाहरण के तौर पर, जवाहरलाल नेहरू और उनके सहयोगी न होते तो भारत एक संसदीय लोकतंत्र नहीं होता। हर सरकार पूर्ववर्ती सरकारों के काम को आगे बढ़ाती है। सफ़ेद-झूठ पत्र के लेखकों ने इस मौलिक सत्य को ध्यान में नहीं रखा।
पूर्व वित्त मंत्री ने आंकड़े देते हुए कहा कि यूपीए सरकार के दौरान सब कुछ काला था और एनडीए सरकार के दौरान सब कुछ सफ़ेद चमक रहा था… इस झूठ के अंत के लिए आइए यूपीए और एनडीए के तुलनात्मक प्रदर्शन पर चर्चा करें:
यूपीएएनडीए
जीडीपी वृद्धि दर 7.46% (पूर्व श्रेणी) 5.9%
6.7% (नवीन श्रेणी)
राजकोषीय घाटा (अंतिम वर्ष में) 4.5% 5.8%
राष्ट्रीय ऋण (अंतिम वर्ष में) ₹ 58.6 लाख करोड़ ₹ 173.3 लाख करोड़
ऋण/जीडीपी अनुपात 52% 58%
घरेलू बचत (जीडीपी का प्रतिशत) 23% 19%
कृषि आय वृद्धि दर 4.1% 1.3%
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल NPA ₹ 8 लाख करोड़ (2004-05 से 2013-14) ₹ 55.5 लाख करोड़ (2014-15 से 2022-23)
माफ़ किए गए बैंक ऋण ₹ 2.2 लाख करोड़ ₹ 14.56 लाख करोड़
कार्यकाल की समाप्ति
खर्च (कुल खर्च के प्रतिशत के तौर पर)
स्वास्थ्य पर 1.7% 1.7%
शिक्षा पर 4.6% 2.9%
जीडीपी के प्रतिशत तौर पर कुल निर्यात 17% 13%
व्यापार संतुलन ₹ 8.1 लाख करोड़ ₹ 21.13 लाख करोड़
अमेरिकी डॉलर एक्सचेंज रेट ₹ 61 ₹ 83
विनिर्माण का हिस्सा (GVA के प्रतिशत के तौर पर) 17% 14%
कच्चे तेल का उत्पादन 36 मिलियन टन 28 मिलियन टन
केंद्रीय क्षेत्र की परियोजनाओं की लागत में वृद्धि ₹ 1,00,943 करोड़ ₹ 4,70,663 करोड़
पेट्रोल की कीमत ₹ 71.51 ₹ 96.72
डीज़ल की कीमत ₹ 57.28 ₹ 89.62
एलपीजी सिलेंडर की कीमत ₹ 414 ₹ 1,103
आंगनवाड़ी की संख्या 13.4 लाख 13.9 लाख
आंगनवाड़ी कर्मियों की संख्या 12.9 लाख 13.1 लाख
आंगनवाड़ी सहायकों की संख्या 11.7 लाख 11.7 लाख
आशा कार्यकर्ताओं की संख्या 8.5 लाख 10 लाख
केन्द्र सरकार के कर्मचारियों की संख्या 33,28,027 31,67,143
एक आंकड़ा जो अर्थव्यवस्था की स्थिति का सार बताता है, वह है जीडीपी विकास दर। इससे पहले कभी भी 5 साल की अवधि में भारत ने 8 प्रतिशत की विकास दर हासिल नहीं की थी जो 2004-2009 में हासिल की थी। इससे पहले 10 साल की अवधि में भारत ने कभी भी 7.5 प्रतिशत की विकास दर हासिल नहीं की थी जो 2004-2014 में हासिल की थी।भारतीय अर्थव्यवस्था ने 2005-06 और 2007-08 के बीच तीन वर्षों में ‘विकास की स्वर्णिम अवधि’ दर्ज की जब सकल घरेलू उत्पाद 9.5 प्रतिशत की औसत से 9 प्रतिशत या उससे अधिक की दर से बढ़ा। भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपना सर्वश्रेष्ठ राजकोषीय प्रदर्शन 2007-08 में किया जब राजकोषीय घाटा 2.5 प्रतिशत और राजस्व घाटा 1.1 प्रतिशत था।बयान के आखिर में पर वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि सफ़ेद-झूठ पत्र के बारे में हमारे पास कहने के लिए और भी बहुत कुछ है। हम आज इतना ही बताएंगे और आने वाले दिनों में अन्य तथ्य सामने रखने का वादा करते हैं।