गौरव गोगोई का पीएम मोदी पर तंज, कहा- अपनी छवि बचाने के लिए चीन को खुश करना बंद करें

• वर्तमान स्थिति को स्पष्ट करने के लिए प्रधान मंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की जानी चाहिए और तत्पश्चात इस संबंध में एक एक श्वेत पत्र जारी किया जाना चाहिए;

• रक्षा संबंधी स्थायी संसदीय समिति को चीन के साथ टकराव की स्थिति पर एक ब्रीफिंग दी जानी चाहिए (बजाय, सेना की वर्दी की चर्चा के);

• संसद में दो दिवसीय चर्चा;

• एक पूर्णकालिक चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की शीघ्र नियुक्ति हो, एक ऐसा पद जो हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण अवधि के दौरान सात महीने से खाली है; तथा

• अग्निपथ योजना को वापस लेना, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को उच्च खतरे के समय में हमारे सैनिकों का मनोबल गिरने का खतरा है।

 

नई दिल्ली, (प्रदीप कुमार): पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ सीमा संकट शुरू होने के दो साल से भी अधिक समय बाद, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति को ‘डीडीएलजे’ के रुप में सारांशित किया जा सकता है: वास्तविकता से इंकार (Deny), सच्चाई से ध्यान भटकाना (Distraction), झूठ बोलना (lie), झूठ को न्यायोचित ठहराना (Justify)। गलवान में हमारे 20 बहादुर भारतीय सैनिकों को खोने के केवल चार दिन बाद, 19 जून 2020 को एक सर्वदलीय बैठक में बोलते हुए पीएम ने चीन को क्लीन चिट देते हुए कहा था: “न यहां कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है।” फिर भी, भारत ने ऐसे 1,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अपना नियंत्रण खो दिया है जहां हमारे सैनिक पहले गश्त कर सकते थे, लेकिन अब या तो चीनी सैनिकों द्वारा उन्हें ऐसा करने से रोका जाता है अथवा सैनिकों को पीछे हटाने के दोनों देशों के बीच हुए समझौते के अंतर्गत वे इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते हैं।

एक व्यक्ति जिसने कभी चीन को “लाल आंख” दिखाने का वादा किया था, वह आज चीन का नाम लेने से भी डरता है। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि 7 जुलाई 2022 को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच नवीनतम दौर की वार्ता किसी भी परिणाम तक पहुंचने में विफल रही। बैठक के बाद विदेश मंत्रालय द्वारा जारी वक्तव्य में चीन से “शेष सभी क्षेत्रों से चीनी सेना को पीछे हटाने का कार्य (Disengagement) पूरा करने के लिए” कहा गया था, जबकि चीन द्वारा जारी वक्तव्य में लद्दाख का कोई जिक्र ही नहीं किया गया, इसकी अपेक्षा, यूक्रेन पर चीनी चिंताओं का उल्लेख किया गया था। हम इतनी दयनीय स्थिति में पहुंच गए हैं कि चीन भारत की मांगों को स्वीकार करने की भी ज़हमत नहीं उठाता।

जब हमारे अपने प्रधान मंत्री ही भारत के लोगों को लद्दाख के बारे में सच्चाई बताने की हिम्मत नहीं जुटा सकते, तो हमारा प्रतिद्वंदी इसे क्यों स्वीकार करेगा? भाजपा सरकार सीमा की स्थिति का उल्लेख करने के लिए “गतिरोध बिंदुओं” जैसी सौम्य शब्दावली का उपयोग करती है। कृपया भारत के लोगों को समझाएं कि अगर चीनी सैनिकों का हमारे क्षेत्र पर नियंत्रण नहीं है तो “गतिरोध” किस बात पर है।

पीएम की अपनी छवि को बचाने की जरूरत सरकार को भी गांठों में बांध रही है: अगस्त 2020 में रक्षा मंत्रालय को अपनी वेबसाइट से एक ऐसे दस्तावेज को हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा था जो सीधे तौर पर पीएम के कथन का खंडन करता था और स्वीकार करता था कि “चीनी पक्ष ने कुगरंग के क्षेत्रों, नाला, गोगरा और पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी तट पर अतिक्रमण किया हुआ है।” नवंबर 2020 में विदेश मंत्रालय ने एक अमेरिकी रिपोर्ट का “संज्ञान लिया” कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश के विवादित क्षेत्र में 100 घरों का एक गांव बनाया है, और भारत अपने क्षेत्र पर चीन के “अवैध कब्जे” को कभी स्वीकार नहीं करेगा। तथापि, तत्कालीन चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ ने इस रिपोर्ट का खंडन किया और हमारी सीमा में किसी भी चीनी निर्माण से इनकार किया।

कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों की चीनी घुसपैठ को रोकने के लिए एक स्पष्ट नीति थी: एक त्वरित, संकेंद्रित प्रत्युत्तर जो बातचीत की टेबल पर सौदेबाजी के लिए जगह बनाती थी और चीन के पीछे हटने की प्रक्रिया को सुगम बनाती थी। नाथूला (1967), सुमदुरोंग चू (1986) और चुमार (2013) में ऐसा किया गया था – तीसरे मामले में तीन सप्ताह के बाद डेपसांग से चीन को पीछे हटना पड़ा था।

अपनी प्रारंभिक भूलों के बाद, इस सरकार ने 29/30 अगस्त 2020 की रात को पैंगोंग त्सो के दक्षिण में कैलाश रेंज में भारतीय सेना को चौकियों पर कब्जा करने के लिए अधिकृत करने का अच्छा काम किया। हालाँकि, प्रधान मंत्री ने बाद में हिम्मत हार दी और फरवरी 2021 में चीन द्वारा अपनी सेना को पूर्णतया पीछे हटाने और यथास्थिति बहाल करने पर जोर दिए बिना इन लाभकारी चौकियों को छोड़ दिया। पूर्व कोर कमांडर मेजर जनरल राज मेहता (सेवानिवृत्त) ने इस समय से पूर्व भारतीय सेना को हटाने के निर्णय को “गंभीर गलती” के रूप में वर्णित किया।

जाहिर है, भारत का रुख अग्र प्रतिक्रियात्मक होने के बजाय, प्रतिक्रियात्मक हो कर रह गया है। हमारे वक्तव्यों में यथास्थिति को एक उद्देश्य के रूप में भी संदर्भित करना बंद कर दिया गया है। भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र के तहत भारत और चीन ने कोर कमांडर स्तर पर 15 दौर की वार्ता और विदेश मंत्रालय स्तर पर 10 दौर की वार्ता की। इस दौरान, चीन ने हाल ही में अक्साई चिन में एक अभूतपूर्व सैन्य निर्माण के साथ अपने नियंत्रण को मजबूत किया है जिसमें एलएसी तक 5 जी नेटवर्क, पांच नए हेलीपोर्ट, पैंगोंग त्सो में एक बड़ा पुल और हवाई गतिविधि में उल्लेखनीय वृद्धि शामिल है। इस विस्तार का उद्देश्य चीन को पूर्वी लद्दाख में तेजी से बढ़ने और तेजी से युद्धाभ्यास करने की क्षमता प्रदान करना है। यह स्पष्ट है कि चीनी अति-आक्रामक हो रहे हैं, जबकि हमारा नेतृत्व अपनी ‘डीडीएलजे’ रणनीति के तहत भारतीय लोगों को धोखा देना पसंद करता है।

क्या पीएम द्वारा चीन के तुष्टिकरण के पीछे कुछ गहरा रहस्य है? मोदी जी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से 18 बार मुलाकात की और चार बार मुख्यमंत्री और पांच बार प्रधान मंत्री के रूप में चीन का दौरा किया। इस बीच, उनकी नीतियां चीन पर हमारी आर्थिक निर्भरता को और गहरा कर रही हैं: चीन से भारत का आयात 2021-22 में 94 बिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है। जैसा कि मुख्यमंत्री मोदी ने स्वयं एक बार कहा था: “समस्या सीमा पर नहीं बल्कि दिल्ली में है”।

कांग्रेस पार्टी का रुख बिल्कुल स्पष्ट है, 5 मई 2020 से पहले एलएसी पर विद्यमान यथास्थिति को हर कीमत पर बहाल किया जाना चाहिए। इस पर कोई भी समझौता नहीं हो सकता है। हम मांग करते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी चीनी खतरे के बारे में देश को विश्वास में लें और निम्नवत कार्रवाई करें।

 

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