लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा है कि अगले साल भारत में आयोजित होने वाले 25वें कॉमनवेल्थ देशों की संसदों के अध्यक्षों और पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन (CSOPC) का मुख्य फोकस संसदों के कामकाज में एआई और सोशल मीडिया के अनुप्रयोग पर होगा। बिरला ने यह टिप्पणी गर्नजी में आज आयोजित CSPOC की स्टैंडिंग कमेटी की बैठक की अध्यक्षता करते हुए की है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत में हो रहे परिवर्तन का जिक्र करते हुए, ओम बिरला ने कहा कि भारत अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और स्टार्टअप के लिए तीसरा सबसे बड़ा इकोसिस्टम बन गया है। बिरला ने कहा कि भारत कई क्षेत्रों में व्यापक परिवर्तन से गुजर रहा है, जैसे कि कृषि, फिनटेक, एआई, और अनुसंधान और नवाचार। ओम बिरला ने यह भी बताया कि भारत के पास अब विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचा और सेवा क्षेत्र है, और उन्हें उम्मीद है कि अगले साल, जब गणमान्य व्यक्ति CSPOC के लिए भारत आएंगे, तो वे देश की विरासत और प्रगति के अद्वितीय मिश्रण का अनुभव करेंगे।
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लोकतंत्र के संरक्षक, विकास को गति देने वाले और लोक कल्याण के संवाहक के रूप में संसदों की भूमिका पर बल देते हुए, ओम बिरला ने जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और साइबर अपराध जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए संसदों को अधिक प्रभावी, समावेशी और पारदर्शी बनाने के महत्व पर प्रकाश डाला।
ओम बिरला ने सुशासन को बढ़ावा देने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए संसदीय संस्थाओं को अधिक प्रभावी, समावेशी और पारदर्शी बनाने के महत्व पर भी प्रकाश डाला। इस सत्र में संसदीय नेतृत्व वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने और 28वें CSPOC के लिए आधार तैयार करने के लिए एकत्रित हुआ, जिसकी मेजबानी भारत 2026 में करेगा। बिरला ने कहा कि CSOPC मंच सदस्य देशों को सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने, संसदीय सहयोग को मजबूत करने और एक न्यायसंगत तथा समतापूर्ण भविष्य के निर्माण की दिशा में मिलकर काम करने के लिए एक अमूल्य अवसर प्रदान करता है ।
ओम बिरला ने 2026 में 28वें CSPOC के मेजबान के रूप में भारत को चुने जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि इससे भारत को अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और समावेशिता और सद्भाव की सदियों पुरानी परंपराओं को विश्व के साथ साझा करने का अनूठा अवसर मिलेगा । बिरला ने वैश्विक सहयोग और एकता के मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में वसुधैव कुटुम्बकम- “पूरा विश्व एक परिवार है” के प्राचीन भारतीय दर्शन की प्रासंगिकता के बारे में भी बात की।
संसदों द्वारा सतत विकास और सुशासन को बढ़ावा दिए जाने तथा गरीबी, असमानता और कुपोषण जैसी चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान किए जाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, ओम बिरला ने नीतियों तैयार करने , संसाधनों का विवेकपूर्ण आवंटन करने और अधिक न्यायसंगत और समावेशी भविष्य के निर्माण में सरकारों का मार्गदर्शन करने की सांसदों की भूमिका पर बल दिया।
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बैठक के दौरान हुई चर्चाओं में भारत में आयोजित किए जा रहे आगामी 28वें CSPOC के एजेंडे को अंतिम रूप देना और दुनिया भर की संसदों को प्रभावित कर रहे प्रणालीगत मुद्दों पर विचार-विमर्श करना शामिल था। लोकसभा अध्यक्ष बिरला ने 1970-71, 1986 और 2010 में CSPOC सहित ऐसे कार्यक्रमों की मेजबानी करने की भारत की परंपरा के बारे में बताया और राष्ट्रमंडल देशों के सभी पीठासीन अधिकारियों को नई दिल्ली में सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। ओम बिरला ने विश्वास व्यक्त किया कि आगामी सत्र में महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर सार्थक संवाद होगा और इन समस्याओं के समाधान के लिए संयुक्त प्रयास किए जाएंगे ।
ओम बिरला ने गर्नजी बैलिविक के पीठासीन अधिकारी, महामहिम सर रिचर्ड मैकमोहन को उनके गरिमामयी नेतृत्व और आतिथ्य-सत्कार के लिए अपना आभार व्यक्त करते हुए अपनी बात समाप्त की । बैठक में समकालीन चुनौतियों से निपटने तथा लोकतंत्र और सुशासन के सिद्धांतों को बनाए रखने की राष्ट्रमंडल संसदों की साझा प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई।
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