Paralympics 2024: हरियाणा के लाल नितेश ने किया कमाल, भारत की झोली में डाला गोल्ड मेडल  

Paralympics 2024

Paralympics 2024: पेरिस पैरालंपिक (Paralympics)  में हुई बैडमिंटन एकल प्रतिस्पर्धा में हरियाणा के लाल नितेश लुहाच ने अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन कर भारत की झोली में गोल्ड मेडल डाला है। इस जीत के बाद देश और दुनिया में हरियाणा का नाम रोशन करने वाले नितेश के परिजनों और गांववालों की खुशी का ठिकाना नहीं है।

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आपको बता दें, हरियाणा के चरखी दादरी जिले के गांव नांधा निवासी नितेश लुहाच पहले फुटबॉल के अच्छे खिलाड़ी थे, मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। करीब 15 वर्ष की आयु में विशाखापट्‌टनम में एक ट्रेन की चपेट में आने से उन्होंने अपना बांया पैर गंवा दिया था, मगर उन्होंने फिर भी हार नहीं मानी। हादसे के दुख से उबरकर उन्होंने फिर बैडमिंटन खेलना शुरू किया जिसमें उन्होंने महारत हासिल की और आज का दिन है कि उन्होंने पेरिस पैरालंपिक (Paralympics) में हुई बैडमिंटन एकल प्रतिस्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतकर देश का और खुद का नाम रोशन किया है। उनकी इस उपलब्धि से गांव में खुशी का माहौल है और लड्डू बांटकर लोग खुशी का इजहार करते नजर आ रहे हैं।

पेरिस पैरालंपिक (Paralympics) में हुई बैडमिंटन एकल प्रतिस्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतकर भारत का नाम रोशन करने वाले नितेश के पिता इंडियन नेवी के रिटायर्ड सैनिक हैं और जयपुर में रहते हैं। नितेश शुरुआत में आठ साल तक गांव में ही अपने ताऊ गुणपाल के पास रहे उसके बाद पिता की पोस्टिंग के चलते अलग-अलग शहरों में जाना पड़ा। नितेश के चाचा सत्येंद्र व ताऊ गुणपाल ने नितेश के दिव्यांग होने की घटना का जिक्र करते हुए बताया कि नितेश जब 15 साल के थे उस दौरान एक ट्रेन हादसे में उन्होंने अपना बांया पैर गंवा दिया था। जिसके बाद उसने टाइम पास करने के लिए बैडमिंटन खेलना शुरू किया था लेकिन बाद में उसकी प्रतिभा को कॉलेज में एक कोच ने पहचाना और उसे निखारने का काम किया। इसके बाद से वह आगे ही बढ़ता चला गया और आज देश के लिए गोल्ड जीतकर लाया है। बिना पैर के भी ये दुनिया नापी जा सकती है ये उसने साबित कर दिखाया है।

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बीजिंग पैरालंपिक में जीता था सिल्वर

नितेश ने इससे पहले बीजिंग पैरा ओलंपिक (Paralympics) में भी कमाल का प्रदर्शन किया था और उन्होंने सिल्वर मेडल हासिल किया था। लेकिन उसकी तमन्ना देश के लिए गोल्ड जितने की थी जिसके चलते उसने और कड़ी मेहनत की और जो सपना बीजिंग में अधूरा रह गया था उसे पेरिस में पूरा करके दिखाया है।

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