राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू: जनजातीय समुदाय की जीवनशैली जलवायु परिवर्तन की वैश्विक समस्या का समाधान है

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को कहा कि जनजातीय समुदाय की जीवनशैली जलवायु परिवर्तन की वैश्विक समस्या का समाधान प्रदान करती है और उनके पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा के लिए सामूहिक प्रयास किए जाने की अपील की।उन्होंने आदिवासी समुदायों से प्रकृति के साथ मिलकर रहने की कला सीखने पर जोर दिया, खासकर तब जब आधुनिकीकरण की दौड़ ने पृथ्वी और उसके प्राकृतिक संसाधनों को काफी नुकसान पहुंचाया गया है।मुर्मू ने मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में “आदि महोत्सव” का उद्घाटन किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए आदिवासी जीवनशैली सबसे कारगर है।

इस महोत्सव का उद्देश्य भारत की जनजातीय विरासत को दिखाना है। ये महोत्सव 18 फरवरी तक चलेगा।मुर्मू ने कहा कि आदिवासी लोगों को नई तकनीक से फायदा हो सकता है।उन्होंने पारंपरिक ज्ञान के धीरे-धीरे खत्म होने पर चिंता भी जताई।राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार एसटी (अनुसूचित जनजाति) के विकास को प्राथमिकता देती है, लेकिन उनकी संस्कृति को बचाना भी उतना ही अहम है।मुर्मू ने अपनी तरह का पहला वेंचर कैपिटल फंड भी लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य एसटी के बीच इंटरप्रेन्योरशिप को बढ़ावा देना है।उन्होंने कहा कि आदिवासियों को इस योजना से लाभ होगा और वे भारत की आत्मनिर्भरता में योगदान देंगे।केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि आदिवासी समुदायों को पिछली सरकार ने नजरअंदाज किया था लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें सम्मान दिया है।

द्रौपदी मुर्मू, राष्ट्रपति:  हमारे जनजाति भाई-बहन अपने जीवन के हर पहलू में आसपास के परिवेश और पेड़ पौधे और जीव जंतु का ध्यान रखते रहे हैं। हमें उनकी जीवनशैली से प्रेरणा लेनी चाहिए। आज जो पूरा विश्व ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज की समस्या के निदान का प्रयास कर रहे हैं, तो जनजाति समुदाय की जीवनशैली और भी अनुकरणीय हो जाती है।आधुनिकता की अंधी दौड़ में धरती मां और प्रकृति का बहुत अधिक नुकसान किया है। हम सब का ये प्रयास होना चाहिए कि टेक्नोलॉजी का स्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए हो और समाज के सभी लोगों विशेष कर वंचित वर्गों का सर्वांगीण विकास के लिए हो।जिस तरह वनस्पतियां और जीव जंतु विलुप्त होते जा रहे हैं ऐसे में ट्रेडिशनल नॉलेज भी हमारी सामूहिक स्मृति से मिटते जा रहा है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम उस अमूल्य नीति को संचित करें और आज की आवश्यकता के हिसाब से समुचित प्रयोग करें।”

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