राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने PM व्याख्यानमाला में ‘चंद्रशेखर का जीवन और विरासत’ पर व्याख्यान कर कही ये बड़ी बातें

( प्रदीप कुमार )- राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने कहा तत्कालीन पीएम चंद्रशेखर अयोध्या राम जन्मभूमि मुद्दे को सुलझाने के करीब पहुंच गए थे

राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश ने आज नई दिल्ली में प्रधानमंत्री संग्रहालय में प्रधानमंत्री व्याख्यानमाला के भाग के रूप में ‘चंद्रशेखर का जीवन और विरासत’ पर व्याख्यान दिया। राजनीति में चंद्रशेखर की विरासत को याद करते हुए उपसभापति हरिवंश ने इस बात का विशेष जिक्र किया कि चंद्रशेखर ऐसे दुर्लभ राजनेताओं में से थे, जो अपने छह दशकों से अधिक के सार्वजनिक जीवन के दौरान अपनी समाजवादी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध थे। वे साहस और दृढ़ विश्वास के प्रतीक थे और उन्होंने अपने राजनीतिक वाद-विवाद में उल्लेखनीय सभ्यता प्रदर्शित की।

उपसभापति हरिवंश ने प्रधानमंत्री के रूप में चंद्रशेखर के समय को याद किया और बताया कि कैसे उन्होंने अयोध्या राम जन्मभूमि के लंबे समय से चले आ रहे विवाद का लगभग समाधान कर दिया था। “चंद्रशेखर की सरकार केवल सात महीने तक चली, फिर भी उन्होंने दोनों पक्षों को एक साथ लाकर और विश्व हिंदु परिषद, अखिल भारतीय बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और उस समय के अन्य प्रमुख राजनेताओं के बीच पहली आधिकारिक बैठक की व्यवस्था करके इस जटिल मुद्दे को हल करने के लिए तेज प्रयास किए। यदि चन्द्रशेखर सरकार कुछ और समय तक रही होती, तो उन्हें यकीन था कि यह मुद्दा शांतिपूर्ण ढंग से हल हो गया होता। हालाँकि, समझौते की ये सारी ख़बरें उस समय कांग्रेस के लिए उतनी सुखद नहीं थीं। राजीव गांधी और उनके सलाहकार संभवतः घबरा गए थे और निश्चित रूप से उस समय सरकार से समर्थन वापस लेने का यह एक महत्वपूर्ण कारक रहा होगा।”

उन्होंने कहा कि “जब मैं उनकी जीवनी लिख रहा था, तो मुझे उस समय के नेताओं की कई टिप्पणियाँ मिलीं, जिन्होंने स्वीकार किया था कि केवल चन्द्रशेखर ही बिना किसी पूर्वाग्रह के संबंधित सभी पक्षों से बात कर सकते थे, और बदले में, उन्होंने उनका विश्वास और सम्मान भी अर्जित किया। एक प्रतिष्ठित नेता ने अपनी आत्मकथा में कहा है कि दोनों पक्ष भूमि-बंटवारे के सुझाव पर सैद्धांतिक रूप से सहमत हो गए थे,” ।

उन्होंने कहा कि 1990-91 में एक बड़े वित्तीय संकट को टालने के लिए की गई शुरुआती कड़ी मेहनत के लिए चंद्रशेखर को भी उचित श्रेय मिलना चाहिए। बाद में पी.वी.नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह को भारत के उदारीकरण के लिए पहचान मिली, जबकि आईएमएफ और बहुपक्षीय संस्थानों के साथ बातचीत करने और देश को दिवालिया होने से बचाने के लिए देश के स्वर्ण भंडार से सोना गिरवी रखने का प्रारंभिक कार्य चन्द्रशेखर जी के प्रधानमंत्रित्व काल के आखिरी कुछ दिनों के दौरान किया गया था। उस समय कई लोगों ने देश की ‘सरकारी सम्पत्ति’ को गिरवी रखने के लिए उनकी आलोचना की थी। हालाँकि, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, पूर्व आरबीआई गवर्नर सी.रंगराजन जैसे कई अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों ने यह टिप्पणी की कि देश को डिफ़ॉल्ट होने से रोकने के लिए यह एक साहसिक निर्णय था। उनके लिए राष्ट्रीय हित सदैव अन्य सभी चिंताओं से ऊपर रहा।

आज के समय के संदर्भ में उपसभापति हरिवंश ने कहा कि भारत की 1991 की स्थिति एक यादगार के रूप में काम करनी चाहिए कि फिजूलखर्ची अंततः देश को नुकसान पहुंचाती है। “आज, केवल चुनावी नतीजों के लिए दल अनुचित वादे कर रहे हैं जो कमोबेश राज्यों के लिए स्थायी ऋण चक्र में फंसाने का खतरा पैदा करते हैं। आख़िरकार, वे कर्ज़ बढ़ते हैं और स्थिति को उस कगार पर ला देते हैं जहां कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं।”

यह व्याख्यान प्रधानमंत्री संग्रहालय द्वारा आयोजित प्रधानमंत्री के बारे में श्रृंखला का पांचवां संस्करण था। इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अटल बिहारी वाजपेयी पर एक व्याख्यान दिया था, राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने जवाहरलाल नेहरू पर, लेखक और पत्रकार टी.एन. निनान ने लाल बहादुर शास्त्री पर एक व्याख्यान दिया था।

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