स्मृति शेष: गणित के प्रोफेसर रहे रघुवंश प्रसाद सिंह की राजनीति में कैसे हुई थी एंट्री, जानें उनका राजनीतिक सफर ?

दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह का दिल्ली के एम्स अस्पताल में रविवार को निधन हो गया है। बिहार की राजनीति में वह बड़ा कद रखते थे और राज्य के पूर्व सीएम लालू यादव के बेहद करीबी थे। सियासी गलियारे में आज शोक की लहर है। गणित के प्रोफेसर से लेकर केंद्रीय मंत्री बनने का कुछ ऐसा था रघुवंश प्रसाद का राजनीतिक सफर।

गणित के प्रोफेसर रघुवंश प्रसाद सिंह का कुछ ऐसे शुरू हुआ था राजनीतिक सफर-

रघुवंश प्रसाद सिंह की पहचान बिहार की राजनीति में कद्दावर और समाजवादी नेता के तौर पर होती थी। वो पिछड़ों की पार्टी कहे जाने वाली राजद में सवर्णों के सबसे बड़े चेहरे और लालू प्रसाद के सबसे करीबी थे। रघुवंश प्रसाद सिंह राजनेता बाद में बने पहले वह गणित के प्रोफेसर थे। बिहार यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने के बाद डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह ने साल 1969 से 1974 के बीच करीब 5 सालों तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में बच्चों को गणित पढ़ाया। गणित के प्रोफेसर के तौर पर रघुवंश प्रसाद ने नौकरी भी की और इस बीच कई आंदोलनों में वह जेल भी गए।

इमरजेंसी के दौरान गई थी उनकी नौकरी-

केंद्र में उस समय कांग्रेस की सरकार थी जब रघुवंश प्रसाद सिंह की नौकरी गई। तत्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर लगाई गई करीब 21 महीने की इमरजेंसी के दौरान जब बिहार में जगन्नाथ मिश्र की सरकार थी। तो बिहार सरकार ने जेल में बंद रघुवंश प्रसाद सिंह को प्रोफेसर के पद से बर्खास्त कर दिया था। नौकरी से बर्खास्त होने के सरकार के इस फैसले के बाद रघुवंश प्रसाद सिंह ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और फिर कर्पूरी ठाकुर और जयप्रकाश नारायण के रास्ते पर तेजी से चल पड़े। धीरे-धीरे बिहार की राजनीति में फिर उनका कद बढ़ता चला गया।

आपको बता दें, साल 1974 में जेपी मूवमेंट के समय में मीसा के तहत रघुवंश प्रसाद की गिरफ्तारी हुई थी और उनको मुजफ्फरपुर जेल में बंद किया गया था। फिर उन्हें मुजफ्फरपुर से पटना के बांकीपुर जेल में ट्रांसफर किया गया, जहां उनकी पहली बार लालू यादव से मुलाकात हुई थी। उस दौरान लालू पटना यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट लीडर थे और जेपी मूवमेंट में काफी सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। लालू शुरू से ही एक जुझारू नेता थे, बहुत जल्द किसी के साथ घुल-मिल जाना लालू यादव खासियत थी और फिर उसी बांकीपुर जेल में जब से लालू यादव से मुलाकात हुई तभी लालू-रघुवंश में दोस्ती हुई।

रघुवंश प्रसाद सिंह साल 1977 से 1979 तक बिहार सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे। फिर इसके बाद उन्‍हें लोकदल का अध्‍यक्ष भी बनाया गया और साल 1985 से 1990 के दौरान रघुवंश प्रसाद लोक लेखांकन समिति के अध्‍यक्ष भी रहे। लोकसभा सांसद के तौर पर उनका पहला कार्यकाल साल 1996 से शुरू हुआ था। फिर उन्‍हें बिहार राज्‍य के लिए केंद्रीय पशुपालन और डेयरी उद्योग राज्‍यमंत्री बनाया गया। लोकसभा में दूसरी बार रघुवंश प्रसाद सिंह साल 1998 में निर्वाचित हुए और साल 1999 में तीसरी बार वो लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। साल 2004 में चौथी बार उन्‍हें लोकसभा सदस्‍य के रूप में चुना गया और 23 मई 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास के केंद्रीय मंत्री रहे। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्‍होंने पांचवी बार जीत दर्ज की थी।

जानकारी ये भी है कि रघुवंश प्रसाद सिंह के मुताबिक UPA-2 में भी उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल होने का मौका मिला था, लेकिन लालू यादव की दोस्ती की वजह से ही उन्‍होंने मनमोहन सिंह के मंत्री पद के ऑफर को ठुकरा दिया था। लेकिन कुछ दिन पूर्व रघुवंश प्रसाद सिंह ने पत्र लिखकर राजद से इस्‍तीफा दिया था। मगर उनके इस्तीफा पत्र के जवाब में लालू ने कहा था कि वह कहीं नहीं जा रहे हैं। लेकिन किसी को भी नहीं पता था कि वह दुनिया से ही इस्तीफा दे देंगे।

रघुवंश प्रसाद सिंह थे परिवार के मुखिया –

दिवंगत रघुवंश प्रसाद सिंह परिवार के मुखिया थे, क्योंकि रघुवंश प्रसाद सिंह अपने दो भाइयों में बड़े थे और उनके छोटे भाई रघुराज सिंह का पहले ही देहांत हो चुका है। रघुवंश प्रसाद सिंह की धर्मपत्नी जानकी देवी भी अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनके दो बेटे और एक बेटी है। खास बात ये है कि उनके अलावा उनके परिवार का कोई अन्य सदस्य राजनीति में सक्रिय नहीं था।

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