इस द्वीप में चलती है ‘पत्थर’ की करेंसी

Stone currency in world, इस द्वीप में चलती है 'पत्थर' की करेंसी.... | Live news |

अमन पांडेय : हम हमेशा से किसी भी वस्तु को खरीदने के लिए पैसों का इस्तेमाल करते चले आ रहें है। जब करेंसी नहीं थी, तब बार्टर सिस्टम हुआ करता था, यानी अगर आपको बकरी चाहिए, तो बदले में अपनी भेड़ या ऐसी ही कीमती चीजें खरीदी जाने लगीं फिर सिक्के का अलग मोल होता। आखिर में करेंसी आई, और दुनिया पर छा गई। लेकिन अब दुनिया का एक हिस्सा ऐसा है, जहां कागज के नोट नहीं बल्कि बड़े बड़े पत्थर ही करेंसी है।

प्रशांत महासागर से घिरा यप द्वीप वही जगह है, जहां छोटे से लेकर इंसान के आकार के सिक्के चलते हैं। लगभग सौ स्क्वायर किलोमीटर में फैले इस द्वीप में लगभग सौ स्क्वायर किलोमीटर में फैले इस द्वीप में लगभग 12 हजार लोग रहते हैं। जो कई गांवों में बंटे हैं हर गांव और परिवार के पास कुछ सिक्के होते हैं जिसके पास जितने ज्यादा और जितने भारी पत्थर होंगे , वो उतना ही अमीर माना जाएगा। भारी पत्थरों के बीच एक बड़ा छेद रहता है ताकि जिसे वो करेंसी दी जाए, वो उसे अपने ठेलकर अपने घर तक ले जा सके।

स्टोनी करेंसी की शुरुवात के बारे में कहीं जानकारी नहीं मिलती कि इसकी शुरुआत के बारे में कहीं खास जानकारी नहीं मिलती कि इसकी शुरुआत क्यों और कैसे हुई। माना जाता है कि इसकी एक वजह यह है कि यप पर किसी भी तरह की बहुमूल्य धातु या कच्चे माल का न मिल पाना है। यहां न तो सोना है, न कोयला। ऐसे में सदियों पहले इन्होंने चूना पत्थर को ही करेंसी की तरह इस्तेमाल करना शुरु कर दिया। इस चूना पत्थर के लिए भी इन्हें अपने द्वीप से नाव लेकर लगभग 4 सौ किलोमीटर दूर पलाऊ द्वीप पर जाना होता था यप के लोगो के लिए ये भी कीमती चीज थी, तो उन्होंने इसे ही मुद्रा की तरह काम में लाना शुरू कर दिया। वे पलाऊ से मजबूत नाव लेकर जाते और पत्थर लेकर लौट आते।

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चूने के बड़े पत्थरों को तराशकर उनके बीच छेद कर दिया जाता और ऊपर की तरफ कहीं अपने परिवार या गांव का नाम लिख देते। इन्हें राई कहा गया। अगर किसी को छुट्टा पैसे चाहिए तो वो स्टोन करेंसी देगा, बदले में उसे सीपियां दी जाएंगी। समुद्र में मिलने वाली सीपियां भी यहां पैसों की कीमत रखा करती थीं।अब हालांकि सीप का चलन खत्म हो चुका, लेकिन स्टोन करेंसी अब भी यपवासीयों के जीवन का हिस्सा है।

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