Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अश्लील सामग्री की स्ट्रीमिंग पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर केंद्र और संबंधित दूसरे पक्षों से जवाब मांगा। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि इस मुद्दे से निपटने के लिए उपाय करना विधायिका या कार्यपालिका का काम है।केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार इसे विरोधात्मक मुकदमे के रूप में नहीं लेगी। मेहता ने कहा कि कुछ सामग्री न केवल अश्लील थी बल्कि “विकृत” भी थी।
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उन्होंने कहा, “हालांकि इस संबंध में कुछ नियमन अस्तित्व में थे और कुछ अभी भी विचाराधीन हैं।”याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि ये विरोधात्मक मुकदमा नहीं था और याचिका में ओवर-द-टॉप (ओटीटी) और सोशल मीडिया पर परोसी जा रही अश्लील सामग्री पर गंभीर चिंता जताई गई थी।जैन ने कहा कि ऐसी चीजें बिना किसी जांच या प्रतिबंध के प्रदर्शित की जाती है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आजकल बच्चे इन सब से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ कार्यक्रम इतने विकृत थे कि दो लोग भी एक साथ बैठकर उन्हें नहीं देख सकते थे।उन्होंने कहा कि एकमात्र शर्त ये थी कि ऐसे कार्यक्रम 18 साल से अधिक आयु के दर्शकों के लिए थे, लेकिन उन्हें कंट्रोल नहीं किया जा सकता था। पीठ ने बच्चों द्वारा मोबाइल फोन के इस्तेमाल का भी जिक्र किया।पीठ ने कहा, “पिछली तारीख पर ही हमने उनसे (जैन से) कहा था कि ये या तो विधायिका के लिए है या कार्यपालिका के लिए।”पीठ का स्पष्ट संदर्भ उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की न्यायपालिका के खिलाफ की गई टिप्पणियों से था।
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धनखड़ ने न्यायपालिका द्वारा राष्ट्रपति के लिए निर्णय लेने की समयसीमा निर्धारित करने और “सुपर संसद” के रूप में कार्य करने पर सवाल उठाते हुए कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय लोकतांत्रिक ताकतों पर “परमाणु मिसाइल” नहीं दाग सकता।इसके तुरंत बाद बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि अगर सर्वोच्च न्यायालय को कानून बनाना है तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।मेहता ने सोमवार को कहा कि इस मुद्दे से निपटने के लिए कुछ करने की जरूरत है।
जब पीठ ने केंद्र और कुछ ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सहित संबंधित पक्षों से जवाब मांगने के लिए याचिका पर नोटिस जारी करने की पेशकश की तो मेहता ने कहा कि ये जरूरी नहीं हो सकता है।पीठ ने अपने आदेश में दर्ज किया, “मौजूदा याचिका ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर अलग-अलग आपत्तिजनक, अश्लील और अभद्र सामग्री के प्रदर्शन के संबंध में जरूरी चिंता पैदा करती है।”पीठ पांच याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने अश्लील सामग्री के ऑनलाइन प्रसार पर रोक लगाने के लिए एक प्राधिकरण गठित करने के लिए दिशा-निर्देश मांगे थे।
याचिका में दावा किया गया था कि सोशल मीडिया साइटों पर बिना किसी फिल्टर के अश्लील सामग्री साझा करने वाले पेज और प्रोफाइल हैं और कई ओटीटी प्लेटफॉर्म ऐसी सामग्री स्ट्रीम कर रहे हैं, जिसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी के संभावित तत्व हैं। याचिका में कहा गया है कि अगर इसे कंट्रोल नहीं किया गया तो अश्लील सामग्री के अनियंत्रित प्रसार से सामाजिक मूल्यों, मानसिक स्वास्थ्य और सार्वजनिक सुरक्षा पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि सक्षम अधिकारियों को आवेदन देने के बावजूद कोई फायदा नहीं हुआ।याचिका में केंद्र से सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म तक पहुंच को तब तक रोकने की मांग की गई है, जब तक कि वे भारत में खासतौर से बच्चों के लिए पोर्नोग्राफिक सामग्री तक पहुंच को रोकने के लिए कोई सिस्टम नहीं तैयार कर लेते। इसलिए याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत से सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और इस फिल्ड के विशेषज्ञों की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने की अपील की, जो केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की तरह सामग्री के प्रकाशन या स्ट्रीमिंग की निगरानी और प्रमाणन करे, जब तक कि इसे विनियमित करने के लिए कानून नहीं बन जाता। इसने भारतीय पुनर्वास परिषद और दूसरे विशेषज्ञों द्वारा मान्यता प्राप्त मनोवैज्ञानिकों के एक पैनल की भी मांग की, जो देश भर में अध्ययन करे और लोगों पर अश्लील सामग्री के प्रतिकूल प्रभाव पर रिपोर्ट प्रस्तुत करे।