Vice President: जगदीप धनखड़ ने आज भारत के प्राचीन ज्ञान की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि जैसे-जैसे वैश्विक शांति टूट रही है, युद्ध तीव्र हो रहे हैं और शत्रुता सिद्धांतों में बदल रही है, साथ ही जलवायु संकट का संकट मंडरा रहा है, मानवता एक कगार पर खड़ी है। मुक्ति का मार्ग भारत के प्राचीन ज्ञान में छिपा हो सकता है: सदियों पुरानी समरसता, सहिष्णुता और सह-अस्तित्व की मूल बातें।
उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत अपनी विविधता का जश्न मनाता है, जिसमें कई आधिकारिक भाषाएं, विभिन्न धर्म, और विविध जातीयता एक संविधान के तहत स्वतंत्रता और समानता सुनिश्चित करते हैं। शांति-पूर्ण सह-अस्तित्व हमारी दर्शन में समय-समय पर परिलक्षित हुआ है। भारत की विदेश नीति देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करती है और संघर्ष के मुकाबले संवाद को प्राथमिकता देती है। विविधता में एकता हमारे विचार और क्रिया दोनों में हमेशा प्रदर्शित होती रही है। भारत भेदभाव से दूर, त्योहारों, भोजन, भाषाओं और संस्कृतियों में अंतर को अपनी ताकत के रूप में अपनाता है।
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नई दिल्ली में राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय में ‘भारत के मूल मूल्य, हित और उद्देश्य’ पर संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति (Vice President) धनखड़ ने कहा कि समावेशी विकास, शांति और सार्वभौमिक कल्याण के साथ-साथ पर्यावरण का पोषण भारतीय दर्शन का मूल है। उन्होंने कहा कि भारत के मूल मूल्य, जो सदियों से इसकी पहचान का आधार रहे हैं, अब प्राचीन ज्ञान और आधुनिकता का मिश्रण हैं, जो लोगों की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए हैं।भारत को विश्व की आध्यात्मिक राजधानी और उच्चता और दिव्यता का केंद्र बताते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि भारत ऐसा राष्ट्र है जो सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि समग्र मानवता के कल्याण के लिए काम करता है।
साथ ही कहा कि हाल ही में जी20 अध्यक्ष के रूप में भारत ने अपनी मूल मान्यताओं से प्रेरित होकर, वैश्विक प्रगति में जीडीपी के बजाय मानव-केंद्रित दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया, एकता को विभाजन पर प्राथमिकता दी। अफ्रीकी संघ को स्थायी जी20 सदस्य के रूप में एकीकृत करना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। भारत ने जी20 अध्यक्षता के दौरान ग्लोबल साउथ के लिए आवाज उठाई, जो अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुनी जा रही है। भारत शांति और जलवायु परिवर्तन के उपायों के जरिए एक निर्माणकारी वैश्विक शक्ति बनने का लक्ष्य रखता है।
अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति (Vice President) धनखड़ ने आगे कहा कि भारत के हित इसके लोगों के कल्याण और वैश्विक शांति से जुड़े हैं, और यह आतंकवाद और धार्मिक कट्टरवाद से मिलकर निपटने पर जोर देता है। आर्थिक विकास, जन केंद्रित विकास और समावेशी विकास भारत की प्राथमिकता है। भारत एक नवाचार केंद्र के रूप में उभरने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी पहलों के जरिए नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देता है।
महिला न्याय के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “भारत महिला न्याय में प्रतिबद्ध है, यह न केवल अर्थव्यवस्था और सामाजिक मूल्यों के लिए बल्कि समरसता के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसने न केवल महिलाओं को सशक्त बनाया है, बल्कि इसे महिला नेतृत्व वाले सशक्तिकरण के अगले स्तर पर भी पहुंचाया है। संविधान में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण ऐतिहासिक और गेम चेंजर है, जिससे महिलाओं की सरकार, नीति निर्माण और प्रशासन में बड़ी भागीदारी की संभावना है।”
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राष्ट्र की रक्षा क्षमताओं पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ (Vice President) ने कहा कि शांति का वातावरण विकास के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यदि वैश्विक स्तर पर किसी भी स्थान पर शांति भंग होती है, तो इससे विकास, समरसता पर प्रतिकूल असर पड़ता है, इसीलिए राष्ट्रीय सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना अनिवार्य है।साथ ही उन्होंने कहा कि यह देश को एक मजबूत राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करता है, जो स्पष्ट राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति पर आधारित हो, ताकि हम अपने विकासात्मक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें। इसके लिए भारत ने वैश्विक मंचों पर नियम-आधारित व्यवस्था और सहयोग और संवाद के लिए अपनी वकालत की है, न कि टकराव के लिए है।
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2047 में ‘विकसित भारत’ की भारत की महत्वाकांक्षा का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि भारत की स्वतंत्रता की शताबदी की दृष्टि में समृद्धि, आत्मनिर्भरता, उन्नत अवसंरचना और तकनीकी नेतृत्व शामिल हैं। भारत को प्राचीन और मध्यकालीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का गौरव प्राप्त था, जो दुनिया की एक-चौथाई से एक-तिहाई संपत्ति नियंत्रित करता था। भारत निश्चित रूप से इसे वर्तमान समय में पुनः प्राप्त करने का लक्ष्य रखता है। यह सब मिलकर 2047 में ‘विकसित भारत’ को परिभाषित करेगा। भारत के मूल मूल्य, हित और उद्देश्य मानवता की समग्र आकांक्षाओं से मेल खाते हैं।