Vice President News: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज अवैध प्रवासियों पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “हमारे भारत में लाखों लोग ऐसे रह रहे हैं जिन्हें यहां रहने का कोई अधिकार नहीं है। और वे सिर्फ रह ही नहीं रहे हैं; वे आजीविका गतिविधियों में भी शामिल हैं। वे यहां अपनी आजीविका कमा रहे हैं। हमारे संसाधनों , शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास क्षेत्रों पर दबाव डाल रहे हैं – और अब मुद्दा और भी बढ़ गया है। वे हमारी चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रहे हैं। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में वे महत्वपूर्ण और यहां तक कि निर्णायक खिलाड़ी बन रहे हैं।”
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महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर में डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के 65वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने प्रलोभन और लालच के माध्यम से धर्मांतरण के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा, “प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म का पालन करने का अधिकार है, हर व्यक्ति को अपनी पसंद का धर्म अपनाने का अधिकार है हालांकि, जब धर्मांतरण प्रलोभन, लालच, आकर्षण के माध्यम से होता है, और इसका उद्देश्य ‘राष्ट्र की जनसांख्यिकी को बदलकर हम वर्चस्व प्राप्त करेंगे’ होता है। इतिहास गवाह है, दुनिया के कुछ देश इसका उदाहरण हैं। आप मुझसे अधिक ज्ञानी हैं, अधिक जानकार हैं, आप पता लगा सकते हैं। उन राष्ट्रों का जो चरित्र था वह मिटा दिया गया, जो बहुसंख्यक समुदाय वहां मौजूद था वह गायब हो गया।”उपराष्ट्रपति धनखड़ ने राष्ट्रीय संस्थानों को कमजोर करने के व्यवस्थित प्रयासों पर भी चिंता व्यक्त की और चुनावी प्रक्रियाओं में हेरफेर के प्रयासों के बारे में हाल के खुलासों की विस्तृत जांच का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “व्यवस्थित तरीके से राष्ट्रपति का मजाक उड़ाया जाता है। प्रधानमंत्री का मजाक उड़ाया जाता है। मेरे पद का मजाक उड़ाया जाता है। हमारी संस्थाओं को कलंकित किया जाता है। चाहे वह चुनाव आयोग हो या न्यायपालिका।”
संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि ये अधिकार मौलिक और नागरिक कर्तव्यों के कर्मठ निर्वहन के माध्यम से अर्जित किए जाने चाहिए, “हमारे संविधान ने हमें मौलिक अधिकार दिए हैं लेकिन मौलिक अधिकारों का मार्ग अर्जित किया जाना चाहिए और वह मार्ग तब है जब आप मौलिक कर्तव्यों का पालन करते हैं, जब आप नागरिक कर्तव्यों का पालन करते हैं।”
उन्होंने सार्वजनिक व्यवस्था के लिए चुनौतियों पर अपनी चिंता व्यक्त की, और नागरिकों के बीच सोच में बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया, और कहा, “जरा सोचिए, हमारे जैसे देश में, सार्वजनिक व्यवस्था को चुनौती दी जाती है, सार्वजनिक संपत्ति को जलाया जाता है, लोग आंदोलनों का सहारा लेते हैं जहाँ समाधान सड़क पर नहीं, बल्कि या तो कानून की अदालत में या विधायिका के मंच पर निहित है। अब समय आ गया है कि हर भारतीय संस्थाओं के प्रदर्शन का आकलन करे। मानसिकता को बदलना होगा, आपको एक बहुत शक्तिशाली दबाव समूह बनना होगा। आपको पूछना होगा, आपके जनप्रतिनिधि, नौकरशाही, कार्यपालिका, क्या आप अपना काम कर रहे हैं? जनप्रतिनिधियों को एक विशाल अभ्यास के माध्यम से चुना जाता है। किसलिए? बहस, संवाद, चर्चा में सम्मिलित होने के लिए, आपके कल्याण के लिए नीतियों पर काम करने के लिए। कार्य को बाधित करने के लिए नहीं, कार्य में व्यवधान डालने के लिए नहीं। क्या वे वास्तव में ऐसा कर रहे हैं? यदि वे अपना काम नहीं कर रहे हैं, तो आपके पास उनके लिए एक काम तैयार है क्योंकि अब आपके पास सोशल मीडिया की शक्ति है।सामाजिक परिवर्तन के महत्व पर जोर देते हुए, उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “सामाजिक परिवर्तन तब आएगा जब हमारे पास सामाजिक सद्भाव होगा। सामाजिक सद्भाव विविधता में एकता को परिभाषित करेगा। यह हमारी जाति, पंथ, धर्म, विभाजनकारी स्थितियों को एकता के बल में परिवर्तित करेगा। आइए हम पारिवारिक मूल्यों में विश्वास करें, अपने बड़ों का, अपने माता-पिता का, अपने पड़ोसियों का, अपने पड़ोस का सम्मान करें। हम एक अलग सभ्यता हैं।”
भारत की सदियों पुरानी सभ्यतागत विरासत पर चिंतन करते हुए,उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “प्रकृति से हम भौतिकवादी नहीं हैं, हम आध्यात्मिक हैं, हम धार्मिक हैं, हम नैतिक हैं। हम बाकी दुनिया के लिए रोल मॉडल हैं, और वह मॉडल हजारों वर्षों से चला आ रहा है, इसलिए पारिवारिक मूल्यों को आत्मसात करें, पारिवारिक मूल्यों का पोषण करें, अपने बड़ों का सम्मान करें, अपने माता-पिता का सम्मान करें, और वह सांस्कृतिक शक्ति आपको राष्ट्र के लिए योगदान करने का साहस प्रदान करेगी। देशप्रेम का बीज स्वतः ही खिल उठेगा।उपराष्ट्रपति ने जलवायु परिवर्तन के खतरे पर भी गहरी चिंता व्यक्त की और नागरिकों से प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए ‘एक पेड़ मां के नाम’ के आह्वान में भाग लेने और आत्मनिर्भर भारत के विचार में योगदान करके राष्ट्र को मजबूत करने का आग्रह किया।, “पर्यावरण संरक्षण–अब हम इसे जानते हैं, जलवायु परिवर्तन का खतरा, यह ग्रह अपने अस्तित्व की चुनौती पर खड़ा है। हमारे पास धरती मां के अलावा कोई और स्थान नहीं है। हम ट्रस्टी हैं, हमने इसका लापरवाही से दोहन किया है जिसके परिणामस्वरूप, खतरा बढ़ रहा है, समय निकलता जा रहा है। हमें अपनी भूमिका निभानी होगी। प्रधानमंत्री ने ‘एक पेड़ मां के नाम’ का आह्वान किया है, अगर हम ईमानदारी से इसका पालन करें, और कई लोग कर रहे हैं, लाखों की संख्या में वे इसे कर रहे हैं। यह गेम चेंजर साबित होगा। आइए हम पर्यावरण संरक्षण में विश्वास करें। हर राष्ट्र तभी शक्तिशाली हो सकता है जब वह आत्मनिर्भर हो और इसके लिए हमें स्वदेशी में विश्वास करना चाहिए। आइए हम लोकल के लिए वोकल बनें।इस कार्यकरम के अवसर पर महाराष्ट्र के राज्यपाल एवं डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री सी. पी. राधाकृष्णन, राज्यसभा सांसद डॉ. भागवत कराड, डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विजय फुलारी एवं अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
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