प्राकृतिक खेती के ओर बढ़ रहे भारतीय किसान, पलवल में हुए 100 से ज्यादा रजिस्ट्रेशन

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(दिनेश कुमार): पलवल जिले के किसानों का रूझान प्राकृतिक खेती की ओर बढऩे लगा है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग पलवल के उप निदेशक डा. पवन कुमार शर्मा ने बताया कि प्राकृतिक खेती करने के लिए जिले के करीब 100 किसानों ने प्राकृतिक खेती करने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराया है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा किसानों को प्राकृतिक खेती करने के बारे में ट्रेनिंग भी दी जाएगी।             Aaj ki taja khabre,

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग पलवल के उप निदेशक डा.पवन कुमार शर्मा ने बताया कि प्राकृतिक खेती करने के लिए किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। ताकि किसान अपने खेतों में प्राकृतिक खेती कर सकें। उन्होंने कहा कि रसायनिक खादों के प्रयोग करने से भूमि की ऊर्वरक शक्ति नष्ट होती है। इसके अलावा फसलों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। रसायनिक खादों के प्रयोग से हमारे स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए किसानों को प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। डा. पवन कुमार शर्मा ने कहा कि पलवल जिले के गांव ककराली के किसान द्वारा अपने खेतों पर बीजा अमृत खाद तैयार की गई है। किसान द्वारा खाद को कपास की फसल में डाला जाएगा। उन्होंने बताया कि किसान द्वारा खेतों में कभी भी डीएपी व यूरिया खाद का प्रयोग नहीं किया गया है। प्राकृतिक खेती करने से फसल की लागत भी कम हो जाती है। प्राकृतिक खेती करने से फसल की गुणवत्ता में बढोत्तरी होती है।

गांव ककराली के किसान नेतराम ने बताया कि पिछले कई वर्षों से प्राकृतिक खेती कर रहे है। गाय के गोबर,गौ मूत्र,गुड,पीपल के पत्ते व मिट्टïी के मिश्रण को तैयार कर खाद बनाई जाती है। प्राकृतिक खेती करने से फसल तैयार करने में लागत कम आती है। फसल पोष्टिïक व गुणवत्ता युक्त होती है। प्राकृतिक तौर पर तैयार फसल के सेवन से स्वास्थ्य ठीक रहता है। उनके परिवार के सदस्य बीमारियों से बचे हुए है। उन्होंने किसानों से अपील करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती करें।

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गांव बढ़ा के किसान उम्मेद सिहं ने बताया कि पिछले कई वर्षो से प्राकृतिक खेती कर रहे है। इसके साथ उन्होंने नई किरण किसान विकास समूह बनाया हुआ है। किसानों को प्राकृतिक खेती करने के लिए जागरूक कर रहे है। सीएचसी के माध्यम से किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के बारे में भी बताया है। किसान भी जागरूक हुए है और फसल अवशेषों का प्रबंधन करने लगे है।

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