अमन पांडेय : रोशा घास, जो एक सुगन्धित पौधा है इससे सुगन्धित तेल निकाला जाता है। रोशा घास का मूल स्तान भारत को माना जाता है। इसकी खेती में पारम्परिक फसलों की तुलना में लागत कम और मुनाफा ज्यादा होता है। एक बार रोपाई के बाद रोशा की पैदावार 3 से लेकर 6 साल तक मिलती है। रोशा घास पर कीटों और रोगों का हमला बहुत कम होता है। तो आईए जानते है रोशा घास की खेती करने का सही तरीका।
मिट्टी और जलवायु
रोशा घास का पौधा 10 डिग्री से 45 डिग्री सेल्सियस तक तापमान सहने की क्षमता रखता है। पौधे की बढ़वार के लिए गर्म और नमी वाली जलवायु आदर्श होती है क्योंकि इससे पौधे में तेल की अच्छी मात्रा मिलती है। हल्की दोमट मिट्टी, जिसमें पानी न ठहरता हो, इसके लिए अच्छी रहती है। इसके लिए 100 से 150 सेंटीमीटर सालाना बारिश वाला इलाका भी अनुकूल होता है। रोशा घास की बढ़त 150 से 250 सेंटीमीटर तक होता है। सूखा प्रभावित और पूरी तरह से बारिश पर निर्भर इलाकों के लिए भी रोशा घास एक उपयुक्त फसल है।
नर्सरी की प्रक्रिया
अगर बात पौधे को नर्सरी में तैयार करने की जाए तो पौधे को अप्रैल से मई के बीच में तैयार करना चाहिए। प्रति हेक्टेयर 25 किलोग्राम बीज की मात्रा काफी है। बीज रेत या राख के साथ मिला कर 15-20 सेंटीमीटर की दूरी और 1-2 सेंटीमीटर की गहराई में या क्यारियों के ऊपर छिड़कर बोना चाहिेए।
खेत में पौधों की रोपाई
नर्सरी से निकाल गए पौधों को अच्छी तरह से तैयार खेत में 60×30 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए। रोपाई से पहले खेत में सिंचाई करनी चाहिए और यदि रोपाई के बाद बारिश में देरी हो तो हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए।
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मुनाफा ही मुनाफा
रोशा घास के तेल का इस्तेमाल इत्र, सौन्दर्य प्रसाधन और मसाले में किया जाता है। साथ ही एंटीसेप्टीक,दर्द निवारक, त्वाचा रोग, हड्डी का दर्द कमर की अकड़न से जुड़ी दवाईयों के निर्माण में होता है।
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