Dimple Kapadia: अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया ने कहा मैं बहुत खुश हूं कि मैं आज इस कार्यक्रम में आई और ये इतना आंखें खोलने वाला है कि हम इतने सारे लोगों की जान बचा सकते हैं। मुझे नहीं पता था कि लीवर दोबारा विकसित होता है और फिर से स्वस्थ हो जाता है। इसका मतलब शानदार है और हममें से बहुत से लोग वास्तव में किसी के जीवन में फर्क ला सकता है।मैं ऐसा करना चाहूंगी और मुझे उम्मीद है कि मैं ऐसा कर सकती हूं, और मुझमें हिम्मत है… लेकिन मैं एक दिन उदाहरण के तौर पर नेतृत्व करना चाहूंगी। और उन लोगों के लिए ऐसा करना चाहूंगी जो इतना कष्ट झेल रहे हैं।मुझे यकीन है कि सिनेमा अपने तरीके से जो कुछ भी कर सकता है वो करता है, न केवल चिकित्सा के बारे में, बल्कि जीवन के हर पहलू के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए… मैं यह अपने लिए कह सकती हूं, मैं अपने पूरे जीवन में सिनेमा देखकर बड़ी हुई हूं। कुछ ऐसे भी हैं महान मूल्य आते हैं और वे बस आत्मसात हो जाते हैं… और, यह आत्मसात हो जाते हैं क्योंकि आप पर अच्छे मूल्यों की छाप होती है।
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अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया का कहना है कि सिनेमा “एक स्कूल नहीं” है, लेकिन फिर भी ये लोगों को असलियत बताता है और मेडिकल हालात और दूसरे मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाता है।कपाड़िया भारत के पहले लीवर प्रत्यारोपण की 25वीं वर्षगांठ के मौके पर बुधवार को दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम से अलग पीटीआई वीडियो से बात कर रहीं थी।
ये पूछे जाने पर कि मे़ड़िकल हालात पर जागरूकता बढ़ाने में सिनेमा क्या भूमिका निभा सकता है, डिंपल ने कहा, “मुझे यकीन है कि सिनेमा जो कुछ भी कर सकता है, अपने तरीके से करता है, न केवल चिकित्सा के बारे में, बल्कि जीवन के हर पहलू के बारे में जागरूकता फैलाता है… मैं ऐसा कह सकती हूं। ये मैं अपने लिए कहती हूं, मैं जीवन भर सिनेमा देखकर बड़ी हुई हूं। कुछ महान मूल्य होते हैं जो आते हैं और उन्हें आत्मसात कर लिया जाता है… और, ये आत्मसात हो जाते हैं क्योंकि आप पर अच्छे मूल्यों की छाप होती है।’ कमल हासन और श्रीदेवी अभिनीत “सदमा” (1983) जैसी फिल्में भूलने की बीमारी के इर्द-गिर्द घूमती थीं, जबकि अमिताभ बच्चन अभिनीत “पा” (2009) प्रोजेरिया नामक दुर्लभ आनुवंशिक विकार वाले एक बच्चे की कहानी थी।राजेश खन्ना और बच्चन अभिनीत 1971 की क्लासिक फिल्म “आनंद” की कहानी लिम्फोसारकोमा नाम के कैंसर के इर्द-गिर्द घूमती है।
कपाड़िया ने दिल्ली के अपोलो अस्पताल में किए गए ऐतिहासिक ऑपरेशन की 25वीं वर्षगांठ पर हुए कार्यक्रम में हिस्सा लिया। 25 साल पहले भारत का पहले सफल लीवर प्रत्यारोपण संजय कंडासामी का हुआ था। उन्हें इस कार्यक्रम में सम्मानित किया गया।1998 में डॉक्टरों की टीम ने 20 महीने के तमिलनाडु के मूल निवासी कंडासामी का लीवर प्रत्यारोपण किया था। कंडास्वामी अब खुद एक डॉक्टर हैं। उन्होंने अपने पिता से लीवर का एक हिस्सा मिला था। उनके माता-पिता भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए।अपोलो अस्पताल की 500वीं बाल चिकित्सा लीवर प्रत्यारोपण सर्जरी की प्राप्तकर्ता डेढ़ वर्षीय प्रिशा भी अपने माता-पिता के साथ इस कार्यक्रम में शामिल हुई। कपाड़िया ने कंडासामी और प्रिशा के माता-पिता को सम्मानित किया।
(Source PTI )