बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज होने पर ना करें इग्नोर, जानें इसका इलाज और बचाव 

बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज का खतरा जन्म के समय से ही होती है। इसके लिए आनुवांशिक कारण जिम्मेदार माने जाते हैं | Total tv, Delhi news tv, live

बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज होने पर उनका विकास और शारीरिक वृद्धि सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। इसकी वजह से उनके शरीर के आंतरिक अंगों पर भी बुरा असर पड़ता है। शरीर में ब्लड शुगर की मात्रा बढ़ने पर इस सिचुएशन को मेडिकल की भाषा में डायबिटीज या मधुमेह के रूप में जाना जाता है। टाइप 1 डायबिटीज होने पर बॉडी में इंसुलिन का निर्माण कम होता है जिसके कारण ब्लड शुगर का लेवल बढ़ने लगता है। बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज की समस्या होने पर उनके शरीर में इंसुलिन की कमी होती है और इसकी वजह से शरीर भोजन और शुगर को पचाने और उसे सही ढंग से अवशोषित करने में असमर्थ हो जाता है। बच्चों में डायबिटीज की समस्या ज्यादातर मामलों में जन्म के समय से ही होती है, इसके लिए कई कारण हो सकते हैं। टाइप 1 डायबिटीज की समस्या में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी नुकसान होता है और इसकी वजह से शरीर के अन्य अंगों को भी गंभीर रूप से नुकसान होता है। आइए जानते हैं बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज के बारे में।

डायबिटीज के लक्षण

एक आंकड़े के मुताबिक, दुनियाभर में 5 साल से कम उम्र के बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज की समस्या हर साल लगभग 3 से 4 फीसदी तेजी से बढ़ रही है। इसकी वजह से बच्चे का शारीरिक विकास तो प्रभावित होता ही है साथ ही शरीर के अंदरूनी अंगों को भी नुकसान हो सकता है। लंबे समय तक बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज की समस्या होने पर उनकी जान का भी खतरा रहता है। बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज के लक्षण कुछ समय बाद दिखने शुरू हो जाते हैं। ऐसे में बच्चों की विशेष देखभाल करनी चाहिए।

बच्चों का वजन तेजी से कम होना या वजन न बढ़ना।

बार-बार प्यास लगना।

बार-बार पेशाब लगने की समस्या।

हर समय थकान और चलने-फिरने में परेशानी।

सांस लेने में तकलीफ और बार-बार बेहोश होना।

बच्चे के मूड में बार-बार बदलाव और चिड़चिड़ापन।

बॉडी में इंसुलिन की कमी।

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कुछ बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज की समस्या जन्म के समय से ही होती है। इसके लिए आनुवांशिक कारण जिम्मेदार माने जाते हैं। शरीर में होने वाले वायरल संक्रमण के कारण भी डायबिटीज और टाइप 1 डायबिटीज का खतरा बच्चों में ज्यादा रहता है। इसकी वजह से शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है और इसकी वजह से शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ने लगता है। इसके अलावा अग्नाशय में खराबी होने पर शरीर में इंसुलिन का निर्माण सही ढंग से नहीं हो पाता है जिसकी वजह से शरीर में शुगर का पाचन सही तरीके से नहीं हो पाता है और ब्लड शुगर का लेवल बढ़ जाता है। डाइट और लाइफस्टाइल में गड़बड़ी होने के कारण भी बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज होने का खतरा रहता है। टाइप 1 डायबिटीज के कुछ प्रमुख कारण।

आनुवांशिक कारणों की वजह से।

शरीर में इंसुलिन की कमी।

खराब डाइट के कारण।

फिजिकल एक्टिविटी में कमी के कारण।

कुछ बीमारियों की वजह से।

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डायबिटीज का इलाज

बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज के लक्षण दिखने पर सबसे पहले डॉक्टर से उनके शरीर में मौजूद ब्लड शुगर के लेवल की जांच करते हैं। जांच करने के बाद बच्चों का इलाज शुरू किया जाता है। वैसे 6 साल से 12 साल के बच्चों का शुगर लेवल (फास्टिंग) 80-180 mg/dl के बीच होता है लेकिन भोजन के बाद यह लेवल 90-180 mg/dl हो सकता है। ऐसे में जब बच्चों के शरीर में ब्लड शुगर का लेवल अनियंत्रित होता है तो उन्हें इलाज की जरूरत होती है। सही समय पर बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज के लक्षणों को पहचानकर इलाज लेने से इसे कंट्रोल किया जा सकता है। टाइप 1 डायबिटीज की जांच करने के लिए कुछ बच्चों का ब्लड और यूरिन टेस्ट भी किया जाता है। एसे में सबसे ज्यादा ध्यान डाइट और लाइफस्टाइल पर देना पड़ता है।

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बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज के बचाव के टिप्स

बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज से बचाव के लिए सबसे पहले आपको उनकी डाइट और लाइफस्टाइल का ध्यान रखना चाहिए। स्वस्थ और पौष्टिक डाइट लेने से बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज का खतरा कम होता है। इसके अलावा बच्चों को नियमित रूप से फिजिकल एक्टिविटी में जरूर शामिल करें। बच्चों में वायरल इन्फेक्शन के कारण भी टाइप 1 डायबिटीज का खतरा रहता है इसलिए आपको उन्हें बार-बार वायरल इन्फेक्शन की चपेट में आने से बचाना चाहिए। हेल्दी डाइट और अच्छी जीवनशैली के सहारे से आप बच्चों को टाइप 1 डायबिटीज का शिकार होने से बचा सकते हैं।  बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज के लक्षण दिखने पर बिना देर लगाए सबसे पहले डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

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