बच्चे के जन्म लेने के बाद घर का माहौल खुशी और उत्साह भरा होता है। बच्चे के बाद मां और बच्चे में कई शारीरिक और भावनात्मक बदलाव आते हैं। वहीं जन्म लेने के बाद बच्चे को कई फिजिकल एडजस्टमेंट करनी पड़ती हैं। जहाँ जन्म से पहले बच्चा हर जरूरत के लिए माँ पर निर्भर रहता है। वहीं गर्भ से बाहर आने का मतलब है कि अब बेबी ब्लड सप्लाई और शरीर के जरूरी कार्यों के लिए मां पर निर्भर नहीं है। एक स्टडी के अनुसार शिशुओं को गर्भ के बाहर बहुत सारी दिक्क्तों का सामना करना पड़ता हैं।
प्रीमैच्योर बेबी, जिनके बर्थ में कॉम्प्लिकेशन आई हो या कोई जन्म विकार हो, उनके लिए सांस लेना, खाना पीना यहां तक की इम्यूनिटी जैसी चीजें मुश्किल हो सकती हैं। ऐसे में नवजात को स्पेशल केयर में रखा जाता है जिसे एनआईसीयू कहते हैं। कुछ बच्चे नौ महीने पूरे होने से पहले ही सातवें या आठवें महीने में पैदा हो जाते हैं। ऐसे बच्चे बाकी बच्चों की तुलना में कमजोर होते हैं। जो बच्चे नौ महीने पूरे होने से पहले ही पैदा हो जाते हैं, उन्हें प्रीमैच्योर बेबी कहा जाता है। और ऐसे ही बच्चों को ऐसे स्पेशल केयर सेंटर में रखा जाता है।
जिन नवजात शिशुओं को स्पेशल केयर की जरूरत होती है, उन्हें अक्सर अस्पताल के नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट में रखा जाता है। ऐसे स्थान में एडवांस टेक्नोलॉजी और ट्रेंड हेल्थ प्रोफेशनल्स होते हैं जो शिशुओं की खास देखभाल करते हैं। जो बच्चे बीमार नहीं होते हैं लेकिन उन्हें स्पेशलाइज्ड नर्सिंग केयर की जरूरत होती है, उन्हें भी एनआईसीयू में रखा जाता है। प्रीमैच्योर जन्मे बच्चे जन्म के समय बीमार होते हैं, उनके लिए NICU किसी वरदान से कम नहीं है।
स्टडी के अनुसार जिन बच्चों का जन्म प्रेग्नेंसी के 37वें हफ्ते से पहले हो जाता है, उन्हें एनआईसीयू में रखा जाता है या जो लो बर्थ वेट होते हैं। कुछ स्वास्थ्य जटिलताओं की स्थिति में भी बेबी को एनआईसीयू में रखा जाता है। जिन बच्चों को सांस लेने में दिक्कत, हार्ट प्रॉब्लम, इंफेक्शन या जन्म विकार हो, उन्हें भी एनआईसीयू केयर दी जाती है।
दरअसल प्रेग्नेंसी के 36 से 37वें हफ्ते में पैदा हुआ बच्चा फुल टर्म बेबी से थोड़ा छोटा होता है। लेकिन अगर बच्चा 24वें हफ्ते से पहले पैदा हुआ है, तो उसका साइज काफी छोटा होगा। ये शिशु बहुत नाजुक होते हैं और इनकी स्किन काफी पतली होती है और पलकें अभी बंद हो सकती हैं। प्रीमैच्योर बेबी की नाजुक स्किन की देखभाल करने के लिए हर हॉस्पिटल के एनआईसीयू की अलग-अलग प्रक्रिया होती है। जैसे कि एनआईसीयू में बेबी की बहुत ज्यादा ड्राई स्किन होने पर तेल या क्रीम लगाया जा सकता है।
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कुछ ऐसे बच्चे जिनकी मां की उम्र 16 साल से कम या 40 साल से ज्यादा हो, उसे शराब की लत हो, डायबिटीज, हाई बीपी, ब्लीडिंग, यौन संक्रमित रोग, मल्टीपल प्रेग्नेंसी और बहुत कम या ज्यादा एम्निओटिक फ्लूइड हो ऐसे बेबी को एनआईसीयू की जरूरत पड़ती है। वहीं पैरेंट्स को अपने बेबी के साथ समय बिताने के लिए एनआईसीयू में इजाजत मिलती है। है लेकिन ये भी हो सकता है कि बाकी फैमिली मेंबर्स को इसकी अनुमति ना हो। एनआईसीयू जैसी संवेदनशील जगहों में जाने से पहले हाथ धोने चाहिए ताकि बेबी तक कीटाणु ना पहुंच सकें।
वहीं बेबी को एनआईसीयू में कब तक रहना पड़ता है? बेबी की बीमारी की गंभीरता पर यह निर्भर करता है कि उसे एनआईसीयू में कब तक रहना पड़ेगा। उनके जन्म के समय के अनुसार उन्हें यह रखा जाता है और यह ध्यान दिया जाता है की यहां पर इनका सम्पूर्ण विकास हो सके।
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