अमन पांडेय: समाजवाद की बुलंद आवाज और जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का 75 साल की उम्र में निधन हो गया।वे प्रमुख समाजवादी नेता के तौर पर जाने जाते थे । शरद यादव 70 के दशक में कांग्रेस विरोधी लहर में राजनीति में उपर उठे और दशकों तक प्रमुख विपक्षी चेहरे के तौर पर बने रहे। उन्होंने लोकदल और जनता पार्टी के जरिए करियर को आगे बढाया। शरद यादव ने जयप्रकाश नारायण से लेकर , चौधरी चरण सिंह , राजीव और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भी लंबे समय तक राजनीति की शरद यादव कुल सात बार लोकसभा सांसद चुने गए और तीन बार राज्यसभा सांसद बने। इस दौरान वे केंद्र में वीपी सिंह की सरकार से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी मंत्री रहे । उनके निधन पर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई शख्सियतों ने शोक जताया।
शरद यादव 1989-90 में टेक्सटाईल और फू़ड मंत्री रहे ।उसके बाद 13अक्टूबर 1999 को नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कर्यभार सौंपा गया । 2001 में केंद्रीय श्रम मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री बने । एक जुलाई 2002 से 15 मई तक केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्री, खाघ और सार्वजनिक वितरण मंत्री भी बनाए गए । समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित थे । उऩ्हीं से प्रेरित होकर शरद यादव ने कई राजनीति आंदोलन में हिस्सा लिया । आपातकाल के दौरान MISA के तहत 1969-70,1972, और 1975 में वे हिरासत में लिए गए । शरद यादव ओबीसी की राजनीती के बड़े नेता थे ।उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करवाने में भी अहम भूमिका निभाई।
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शरद यादव राजनीति में तेजी से उभर कर सामने आए । 1978 में वे युवा लोक दल के अध्यक्ष बन गए । 1981में शरद यादव की सियासत मध्य प्रदेश से उत्तर प्रदेश आ गई । तब तक शरद यादव पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह के करीब आ चुके थे । 1980 में उनहें हार का सामना करना पड़ा । लेकिन जब संजय गांधी की मौत के बाद 1981 में अमेठी में उपचुनाव हुआ तो इस चुनाव में शरद यादव राजीव गांधी के खिलाफ खड़े हो गए । इस चुनाव में उन्हें बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा । साल 1999 के लोकसभा चुनाव में शरद यादव को बिहार में बड़ी स्वीकार्यता मिली । दरअसल, तब शरद और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू आमने सामने थे और चुनाव में जीत शरद यादव के हिस्से में आई ।नीतीश कुमार से जुड़वा और भाजपा के साथ गठबंधन ने शरद को बिहार से 15 साल के लालू राबड़ी राज को समाप्त करवाने में भी बड़ी सफलता दिलाई ।शरद यादव 1995 में जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष चुने गए थे. इसके बाद वह 1997 में जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. शरद यादव को कभी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सारथी माना जाता था. लेकिन नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में आगे बढ़ते रहे और कई वजहों से शरद यादव नीतीश की बढ़ती ताकत के साथ कदम ताल नहीकर सके. दोनों दिग्गज समाजवादियों के बीच टकराव होता गया. मनमुटाव बढ़ता गया. इसके बाद शरद यादव ने 2018 में जेडीयू से बगावत कर लोकतांत्रिक जनता दल नाम से अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बना ली ।शरद यादव की नई पार्टी उड़ान नहीं भर सकी और खराब स्वास्थ्य ने उनकी सक्रिय राजनीति को लगभग समाप्त कर दिया. ऐसे में उन्होंने मार्च 2022 में अपनी पार्टी का राजद में विलय कर दिया. तब शरद यादव ने कहा था कि दो यादव एक साथ आ रहे हैं. एक लालू यादव और दूसरे शरद यादव।
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