छत्तीसगढ़ सीएम ने आरक्षण मामले में राज्यपाल पर साधा निशाना

reservation issue in chhattisgarh

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच जारी तनातनी अब सार्वजनिक हो गयी है। मुख्यमंत्री सीएम बघेल ने छत्तीसगढ़ के राज्यपाल पर हमला बोलते हुए सोशल मिडिया पर पोस्ट करते हुए कहा की अगर ये तुम्हारी चुनौती है तो मुझे स्वीकार है, लेकिन तुम्हारे लड़ने के तरीके पर धिक्कार है। उन्होंने लिखा – सनद रहे! भले “संस्थान’ तुम्हारा हथियार हैं, लड़कर जीतेंगे! वो भीख नहीं आधिकार है। फिर भी एक निवेदन स्वीकार करो-कायरों की तरह न तुम छिपकर वार करो, राज्यपाल पद की गरिमा मत तार-तार करो।

बता दें की एक दिन पहले कांग्रेस ने महारैली कि थी जिसमें सीएम बघेल ने राज्यपाल पर निशाना साधते हुए कहा की छत्तीसगढ़ में दो-चार बंधुआ लोगों को छोड़कर सभी लोग आरक्षण विधेयक का समर्थन कर रहे हैं। राज्यपाल ने उस विधेयक को रोक रखा है। मुख्यमंत्री ने कहा, मैने पहले भी आग्रह किया है, फिर कर रहा हूं कि राज्यपाल हठधर्मिता छोड़ें। या तो वे विधेयक पर दस्तखत करें या फिर उसे विधानसभा को लौटा दें।

सीएम बघेल ने रैली में ये कहा था की राज्यपाल न तो विधेयकों पर दस्तखत कर रही हैं और न ही विधानसभा को लौटा रही हैं, वो सिर्फ सवाल सरकार से कर रही हैं। मुख्यमंत्री ने रैली में कहा था, उच्च न्यायालय के एक फैसले की वजह से छत्तीसगढ़ में आरक्षण खत्म हो चुका है। आरक्षण विरोधी भाजपा नहीं चाहती कि आपको आरक्षण मिले। इसी वजह से केंद्र सरकार 14 लाख पद खाली होने के बाद भी नई भर्तीयां नहीं कर रही है। वहीं सार्वजनिक उपक्रमों को भी बेचा जा रहा है ताकि आरक्षण का लाभ न देना पड़े। छत्तीसगढ़ सरकार लोगों को नौकरी देना चाहती है तो उसे रोका जा रहा है।

बघेल ने रैली में ये भी कहा था कि मंत्रिमंडल राज्यपाल को सलाह देने के लिए होता है। लेकिन विधानसभा उन्हें सलाह देने के लिए नहीं है। मंत्रिमंडल जो जानकारी मांगेंगी वह दिया जायेगा, लेकिन जो संपत्ति विधानसभा की है उसका जवाब सरकार नहीं देती है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का काम अलग-अलग है। संविधान में सबको अलग-अलग जिम्मेदारी दी गयी है। लेकिन राजभवन अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर राज्य सरकार से सवाल पूछ रहा है।

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दरअसल छत्तीसगढ़ में उच्च न्यायालय के 19 सितम्बर को आये एक फैसले से आरक्षण देने के लिए बने कानून की संबंधित धाराओं को असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया गया है। जिसके बाद नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए आरक्षण खत्म हो गया। इस स्थिति से बचने के लिए सरकार ने एक-दो दिसम्बर को विधानसभा का सत्र बुलाया। जिसमें दो दिसम्बर को नये आरक्षण संशोधन विधेयक पारित कर राज्यपाल को हस्ताक्षर के लिए भेजा गया। जिसमें अनुसूचित जाति के लिए 13%, अनुसूचित जनजाति के लिए 32%, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% आरक्षण की व्यवस्था की गई है।

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