भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वैश्विक हिस्सेदारी के लगभग आठ प्रतिशत के साथ, 2033 तक 44 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की क्षमता रखती है। एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने मंगलवार को ये बात कही।फिलहाल वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में देश की हिस्सेदारी दो फीसदी है। अंतरिक्ष विभाग के तहत आने वाली ‘सिंगल विन्डो’ स्वायत्त एजेंसी भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) ने मंगलवार को भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के लिए दशकीय दृष्टिकोण और रणनीति पेश की।
इन-स्पेस के अध्यक्ष पवन गोयनका ने कहा, “जब हम भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के लिए दशकीय दृष्टिकोण का अनावरण कर रहे हैं तो हम इस बात पर जोर देते हैं कि भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र का भविष्य एक साझा प्रयास है। इसलिए, हमारी रणनीति विकास को गति देने के लिए सभी हितधारकों के बीच सहयोग के युग को बढ़ावा देती है।”उन्होंने कहा कि इसरो निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए अपने दरवाजे पहले से कहीं अधिक खोल रहा है, ताकि एक साथ मिलकर, हम फिर से बढ़ रहे ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लिए अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को सफलतापूर्वक बढ़ावा दे सकें।
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वर्तमान में, वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में दो प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था लगभग आठ अरब अमेरिकी डॉलर की है। गोयनका ने बताया कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में वैश्विक हिस्सेदारी के लगभग आठ प्रतिशत के साथ, 2033 तक 44 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की क्षमता हैइन-स्पेस ने एक बयान में कहा कि दशकीय विजन और रणनीति इन-स्पेस और इसरो की तरफ से दूसरे हितधारकों के साथ विकसित की गई है।