(अवैस उस्मानी ): सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के मामले में केंद्र सरकार की आलोचना किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आप एक नया कानून लाना चाहते है तो आप ला सकते हैं। लेकिन जब तक मौजूद कानून व्यवस्था का पालन करना होगा। हमारा काम कानून को लागू करना है क्योंकि यह आज मौजूद है। जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम मौजूद है। हम यह देख रहे हैं कि केंद्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले को किस तरह लागू किया जा रहा है। जस्टिस कौल ने कहा कि आप एक नाम को दो तीन बार वापस भेजते है तो क्या इसका मतलब अगर केंद्र को कोई नाम पसंद नहीं आता है तो आप कानून का पालन नहीं करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने अटॉनी जनरल से कहा कि वो सरकार को समझाए कि उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का कॉलेजियम को लेकर टिप्पणी करना ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अटॉनी जनरल से केंद्रीय मंत्रियों को कोलेजियम के बारे में अपनी सार्वजनिक आलोचना पर कुछ नियंत्रण रखने की सलाह देने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाल में जो बयान दिए गए हैं वह बहुत अच्छे नहीं हैं और मंत्रियों को कुछ नियंत्रण रखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक नियुक्तियों के मुद्दे पर केंद्र सरकार की आलोचना किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा जब केंद्र कानून बनाता है तो उम्मीद करता है हम उसका पालन करें जब हम कोई कानून बनाते हैं तो हम आशा करते हैं कि केंद्र उसका अनुसरण करें, अगर हर कोई यह चुनना शुरू कर देता है कि क्या पालन करना है, तो एक ब्रेकडाउन होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर समाज का हर शख्स अपने हिसाब से तय करने लगेगा कि कौन से क़ानून का पालन करना है, किसका नहीं तो पूरा ही सिस्टम गड़बड़ा जाएगा। सरकार भी ये जिम्मेदारी बनती है कि वो मौजूदा क़ानून का पालन करें, सरकार जाहिर तौर पर नया क़ानून ल सकती है, पर उनकी न्यायिक समीक्षा का अधिकार कोर्ट के पास रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कॉलेजियम की सिफारिश पर सरकार की ओर से समय से फैसला न लेने के चलते काबिल जज नहीं मिल पा रहे है। कुछ मामलों में तो सरकार ने दो साल बाद नाम लौटाए। सरकार को कॉलेजियम की सिफारिश पर एतराज का अधिकार है, पर ये एक समयसीमा में होना चाहिएकई मामलो में कॉलेजियम ने सरकार के ऐतराज को देखते हुए अपनी सिफारिश को वापस लिया।पर अगर कॉलेजियम की ओर से नाम फिर से सरकार को भेजा जाता है, तो सरकार को उस पर फैसला लेना ही चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि कॉलेजियम को लेकर लोग क्या खतें हैं हम उसपर ध्यान नहीं देंगे। सिर्फ इस वजह से नियुक्ति को लंबित रखना अस्वीकार है। उचित समय के अंदर फैसला लेना होगा। एक बार नाम दोहराए जाने के बाद आपको नियुक्त करना होगा। यह पिंग पोंग की लड़ाई कब तक चलेगी? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर हर शख्स अपने हिसाब से तय करने लगेगा कि किस कानून का पालन करना है तो पूरा ही सिस्टम गड़बड़ा जाएगा। सरकार की ज़िम्मेदारी है कि।वह मौजूदा कानून का पालन करे। केंद्र सरकार की तरफ से अटॉनी जनरल की ने कहा कि मेरा प्रयास है कि इस प्रक्रिया को कैसे तेज किया जाए? उन्होंने कहा कि कोर्ट के फैसले के बाद कुछ सुझाव जिनको मैंने स्वयं देखा और कानून मंत्री के साथ साझा भी किया इसके बाद MoP को वापस भेज दिया गया। उसका असर दिखने में समय लगेगा। इस दौरान मैंने सिस्टम को देखा जिसमे उसके काम का तरीका, देरी के कारण आदि का समझने की कोशिश की।
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जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों को दो तीन बार पुनर्विचार के लिए भेजती है जबकि सरकार उस पुनर्विचार के लिए कोई ठोस वजह नहीं बताती हैं इसका सीधा मतलब तो यही है कि सरकार उनकी नियुक्ति नहीं करना चाहती। सरकार ने कॉलेजियम के 19 नामों की फाइल को वापस भेज दिया जब हाईकोर्ट कॉलेजियम के नाम भेजें सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम ने उनको मंजूरी दे दी तो दिक्कत कहां है। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कॉलेजियम की सिफारिशों पर सरकार की ओर से हो रही देरी पर सवाल उठाया। जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा NJAC को संसद ने पास किया,पर यह संवैधानिक कसौटी पर नहीं खरा उतरा। ऐसे में आज जो क़ानून है, उसका पालन करना होगा। लोग कॉलेजियम सिस्टम को लेकर कुछ भी बात करें, लेकिन किसी स्टेज पर इसे उपयुक्त माना गया है।