सुहागन महिलाएं क्यों रखती हैं वट सावित्रि का व्रत? जानें इसकी कहानी और पूजा विधि

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Vat Savitri: एक विवाहित स्त्री ही जान सकती है कि स्त्रियों के लिए उनके सुहाग का क्या अर्थ होता है। पंडितों का मानना है कि सनातन धर्म में वट सावित्री पूजा का एक विशेष महत्व है। वे बताते हैं कि माताएं ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को विधिपूर्वक ये पूजा करतीं हैं ताकि वे लंबे समय तक उनका और उनके पति का साथ बना रहे। ऐसी मान्यता है कि देवी सावित्री ने वट सावित्री की पूजा की शुरुआत की थी। जिन्होंने मृत्यु के देव यम से अपने पति के प्राणों को बचाया था। सावित्री ने अपने तपोबल से अपने मृत सुहाग को यमराज से वरदान लेकर उन्हें जीवत कर दिया था, तब से ही अपने पति के लंबे उम्र और स्वास्थ के लिए महिलाएं ये व्रत करने लगीं।

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ऐसा माना जाता है कि बरगद का वृक्ष बहुत बड़ा और दीर्घजीवी होता है। इसलिए इसे हिंदू धर्म में पूज्य माना जाता है। पुराने समय में प्रत्येक देवता ने अलग-अलग वृक्षों को जन्म दिया था, इसी क्रम में यक्षों के राजा मणिभद्र ने वटवृक्ष को जन्म दिया। यहीं कारण है कि वट वृक्ष त्रिमूर्ति का प्रतीक है। माना जाता है कि इसकी छाल में विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव का निवास होता है। यह प्रकृति की उत्पत्ति का प्रतीक है। जिस वजह से माताएं वट सावित्री पूजा के दौरान इस वृक्ष की पूजा करती हैं। इस दौरान वे कच्चा मौली धागा भी इसमें बांधती हैं।


वट सावित्रि कथा के अनुसार सावित्री ने अपने पति को वटवृक्ष के नीचे ही पुनर्जीवित किया था। तब से इस व्रत को “वट सावित्री” भी कहा जाता है। सुहागिन महिलाएं वट सावित्री के व्रत पर भगवान शिव, माता पार्वती, यमराज और सावित्री देवी की पूजा करती हैं। अंखड सौभाग्य की कामना करते हुए सूत के धागे को बरगद के वृक्ष पर लपेटती हैं और अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। इसके साथ सत्यवान और सावित्री की कहानी जुड़ी हुई है, जब सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान को जीवन दान करने के लिए अपनी दृढ़ता और श्रद्धा का प्रदर्शन किया। महिलाएं भी इस दिन व्रत और संकल्प लेती हैं ताकि अपने पति की आयु और प्राण को बचाएं। इस व्रत को करने से दाम्पत्य जीवन खुशहाल और संपन्न होगा। साथ ही, वटसावित्री का व्रत पूरे परिवार को एकजुट करता है।

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इस साल ये व्रत आज यानी 6 जून को मनाया जा रहा है। जो महिलाएं इस दिन व्रत रहती हैं वो इस दिन प्रातःकाल स्नान करके निर्जल रहकर इस पूजा का संकल्प लेती हैं। यमराज, सावित्री और सत्यवान की मूर्ति वट वृक्ष के नीचे रखकर या मानसिक रूप से उनकी पूजा करती हैं। वट वृक्ष की जड़ में जल डालकर, फूल-धूप और मिष्ठान्न चढ़ाती हैं। उसके बाद कच्चा सूत लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं फिर सूत को तनों में लपेटती हैं। अधिकतम सात बार परिक्रमा करने के बाद महिलाएं वहां बैठकर हाथ में भीगा चना रखकर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती और सुनाती हैं। कोंपल को वट वृक्ष से खाने के बाद भोजन पूरा करती हैं। इस दिन सावित्री और सत्यवान की कहानी सुनने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि इस कहानी सुनने से आपकी इच्छाएं पूरी होती हैं।

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