हरी नाम लेते-लेते की परिक्रमा- मोरारी बापू ने कहा, कुछ साल पहले जब मैं यूएन में यहां कथा के लिए आय़ा था तब मेरे मन में एक शिव संकल्प उठा था कि ये विश्व संस्था है। पूरी दुनिया के महानुभाव यहां बैठकर विश्व में भाईचारा हो, प्रेम हो, करुणा हो, संवाद हो। इसकी चर्चा करते हैं। मुझे लगा कि मैं इस सेंटर की परिक्रमा करू, जैसे मंदिरों की परिक्रमा करते हैं, देवताओं की। तो मैंने परमिशन मांगी थी, उन्होंने दे दी। तो मैं, एक-दो लोग मेरे साथ थे तो इसकी परिक्रमा हरी नाम लेते-लेते की, ये मेरे मन में था।”
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व्हाइट हाउस को याद कर हुए भावुक – मोरारी बाबू ने कहा, “मैंने वाशिंगटन में व्हाइट हाउस की भी परिक्रमा की थी। क्रेमलिन में भी परिक्रमा की थी। केवल आध्यात्मिक परिक्रमा, तो यहां जब मैंने परिक्रमा की तो मेरे मन में था कि कभी रामचरित मानस के नवदीप का रामकथा के माध्यम से, मेरा केंद्र रामचरित मानस है और मैं जानता हूं और पूर्वाग्रह छोड़कर कोई भी स्वीकार करना चाहे तो रामचरित मानस वैश्विक मैसेज है। विश्व सत्य का, विश्व प्रेम का, विश्व करुणा का तो मेरे मन में था औऱ परमात्मा ने चाहा कि ये योग बन गया। सभी महानुभावों ने हमें आज्ञा दी और मैं इसे परमात्मा की कृपा समझता हूं।छह दशकों से ज्यादा समय से राम कथा का पाठ कर रहे मोरारी बापू ने कहा, रामचरितमानस धार्मिक और सांस्कृतिक सीमाओं से परे वैश्विक एकता का संदेश देता है।