मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 12 चीतों का हुआ आगमन

(प्रदीप कुमार): साउथ अफ्रीका से आज 12 चीतों को भारत लाया गया है। ये चीते मध्य प्रदेश के कूनो पार्क लाए गए। यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव चीतों का स्वागत करने के लिए मौजूद रहे। भारत से विलुप्त हो चुके चीतों की कड़ी को फिर से जोड़ने के लिए आज मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों का आगमन हुआ। इनमें 7 नर और पांच मादा चीते शामिल हैं। दक्षिण अफ्रीका से इन चीतों को विशेष विमान द्वारा ग्वालियर एयरपोर्ट पर लाया गया। इसके बाद इन्हें हेलीकॉप्टर से कूनो नेशनल पार्क ले जाया गया। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव कूनो नेशनल पार्क में चीतों का स्वागत करने के लिए मौजूद रहे।

इस संबंध में दक्षिण अफ्रीका और भारत ने एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए हैं। समझौते के मुताबिक 12 चीतों का जत्था दक्षिण अफ्रीका से भारत लाया गया है। इन्हें 1 महीना क्वारंटाइन में रखा जाएगा। उसके बाद उन्हें नामीबिया से लाए गए 8 चीतों के झुंड में शामिल कर दिया जाएगा। अब दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते आने के बाद कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों की संख्या 20 हो गई है। यानी चीतों का कुनबा बढ़ गया है।

भारत के वन्यजीव संस्थान द्वारा तैयार ‘भारत में चीतों को फिर से बसाने की कार्ययोजना’ के अनुसार चीतों को दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और अन्य अफ्रीकी देशों से मंगाया जाना है। कार्यक्रम के तहत शुरुआत में 5 साल के लिए ये चीते आएंगे और बाद में जरूरत पड़ने पर और चीते लाये जा सकते हैं। अगले 5 वर्षों में कुल 50 चीतों को भारत लाने की योजना है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामीबिया से आये 8 चीतों की पहली खेप को गत 17 सितंबर को अपने जन्मदिन पर मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय अभयारण्य में छोड़ा था। इनमें 5 मादा और 3 नर चीते थे। पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने पिछले महीने संसद को सूचित किया था कि कूनो में सभी 8 चीतों को अब बड़े परिसर में छोड़ दिया गया है। उन्होंने कहा था कि चीतों में किसी तरह की सेहत संबंधी जटिलता नजर नहीं आई है। देश में 1952 में चीते विलुप्त हो गये थे और 70 साल बाद इस पशु को पिछले साल भारत लाया गया था।

चीतों की वापसी से भारत जैव-विविधता की सदियों पुरानी कड़ियों को जोड़ने का काम तो कर ही रहा है साथ ही यह बाघ, शेर और तेंदुए के संरक्षण पर भी कार्य कर रहा है। उल्लेखनीय है कि बाघ, शेर और तेंदुए की बढ़ती संख्या इस बात का प्रमाण है कि भारत वन्य जीवों के लिए एक बेहतरीन जगह साबित हो रहा है।

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