UPSC: लेटरल एंट्री यानी सीधी भर्ती पर विवाद के बाद केंद्र सरकार ने इसके विज्ञापन पर रोक लगा दी है। कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी को पत्र लिखा जिसमें लेटरल एंट्री के विज्ञापन पर रोक लगाने के लिए कहा गया। इस पत्र में कहा गया है कि प्रधामंत्री का पुरजोर तरीके से मानना है कि लेटरल एंट्री की प्रक्रिया को आरक्षण के प्रावधानों के परिप्रेक्ष्य में संविधान में उल्लेखित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप और सुसंगत बनाया जाए। प्रधानमंत्री का मानना है कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण सामाजिक न्याय पर केंद्रित होना चाहिए।
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केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत मंत्री जितेंद्र सिंह ने अपने पत्र में इस स्कीम के लिए पिछली यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।इसमे कहा गया है कि सैद्धांतिक तौर पर लेटरल एंट्री की अवधारणा का समर्थन 2005 में गठित प्रशासनिक सुधार आयोग की तरफ से किया गया था। जिसकी अध्यक्षता वीरप्पा मोइली की तरफ से की गई थी। इसमें आगे कहा गया है कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने विभिन्न मंत्रालयों के सचिव, UIDAI की टॉप लीडरशिप जैसे कई महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के माध्यम से रिजर्वेशन की प्रक्रिया का पालन किए बिना ही नियुक्तियां की थी।यह सर्वविदित है कि बदनाम राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य सुपर ब्यूरोक्रेसी चलाया करते थे। जो प्रधानमंत्री कार्यालय को नियंत्रित करती थी।
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यूपीएससी को लिखे गए पत्र में पिछली सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा गया है कि साल 2014 से पहले की ज्यादातर लेटरल एंट्री से हुई नियुक्तियां एड-हॉक पर होती थीं. जबकि हमारी सरकार का प्रयास रहा है कि यह प्रक्रिया संस्थागत, खुली और पारदर्शी रहे। बहरहाल लेटरल एंट्री में किसी भी शख्स को यूपीएसी परीक्षा में बैठने की जरूरत नहीं होती और सीधे ही उसकी नियुक्ति बड़े पदों पर होती है।इसमें आरक्षण का लाभ किसी एक समुदाय को नहीं मिलता है। लेकिन इसी प्रक्रिया पर बवाल शुरू हुआ और अब पीएम मोदी ने इस पर रोक लगाने का फैसला किया है।
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