Water Crisis: एक रिसर्च में नासा और जर्मन उपग्रहों से संकलित डेटा का विश्लेषण करते हुए पाया कि मई 2014 के बाद से धरती पर पीने योग्य पानी की मात्रा में अचानक कमी आई है, और तब से यह कमी लगातार बनी हुई है। 2015 से 2023 तक धरती में उपलब्ध मीठे पानी, नदियों और झीलों का पानी, 2002 से 2014 के बीच के औसत से 1,200 क्यूबिक किलोमीटर कम हो जाएगा।
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बता दें, सूखा पड़ने पर खेतों को अधिक सिंचाई की जरूरत होती है, जिससे शहर और खेत अधिक पानी के लिए भूमिगत जल पर निर्भर होते हैं। इससे भूमिगत जल का स्तर गिरता है। वर्षा और बर्फबारी से ये जल स्रोत फिर से भर जाते हैं, जिससे अधिक भूजल निकाला जाता है, जो पानी की आपूर्ति को और भी कम करता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती पर पीने योग्य पानी की कमी का बहुत बुरा प्रभाव हो सकता है। पहली बात यह है कि पानी की कमी से जल संकट बढ़ सकता है, जो हमें घरों में पानी की उपलब्धता में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। खेतों को सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता होती है, इससे कृषि पर भी सीधा असर होगा। पानी की कमी से फसलें सही से नहीं उगेंगी और खाद्य सामग्री की कमी हो सकती है, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं और लोगों को खाने के लिए अधिक पैसे खर्च करना पड़ सकता है।
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पानी की कमी से साफ-सफाई भी मुश्किल होगी, जो बीमारियों का खतरा बढ़ा सकता है। विशेष रूप से पानी से होने वाली बीमारियां जैसे हैजा और डायरिया बढ़ सकती हैं। जब सतही पानी की कमी होगी, लोग भूमिगत जल का अधिक उपयोग करेंगे, जिससे भूजल स्तर गिरने लगेगा, जिससे हालात और खराब हो सकते हैं। अंत में, पानी की कमी से सूखा और प्राकृतिक आपदाओं (जैसे जंगलों में आग लगना या अन्य पर्यावरणीय समस्याएं) का खतरा बढ़ सकता है, जो जीवन को और भी मुश्किल बना सकता है। इस हालत से बचने के लिए पानी का सही इस्तेमाल और संरक्षण करना होगा।
