ऑटोमैटिक लैंडिंग के लिए हम पूरी तरह तैयार- ISRO

ISRO- इसरो ने कहा कि वो अपने महत्वाकांक्षी तीसरे मून मिशन, चंद्रयान-थ्री के लैंडर मॉड्यूल (एलएम) को चंद्रमा की सतह पर लैंड कराने के लिए ऑटोमैटिक लैंडिंग सिक्वेंस (एएलएस) शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार है। लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान वाला एलएम बुधवार शाम 6:04 बजे चंद्रमा के अछूते दक्षिणी ध्रुव में उतरने वाला है। ये उपलब्धि अब तक किसी भी देश ने हासिल नहीं की है।इसरो ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ऑटोमैटिक लैंडिंग सिक्वेंस (एएलएस) शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार। लैंडर मॉड्यूल (एलएम) के भारतीय समयानुसार लगभग 17:44 बजे निर्धारित बिंदु पर आने का इंतजार है।

सभी पैरामीटर्स की जांच करने और लैंडिंग का निर्णय लेने के बाद, इसरो निर्धारित टचडाउन समय से कुछ घंटे पहले, अपने भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) सुविधा से एलएम पर आवश्यक कमांड अपलोड करेगा।इसरो के अधिकारियों के अनुसार, लैंडिंग के लिए, लगभग 30 किमी की ऊंचाई पर, लैंडर ब्रेकिंग चरण में प्रवेश करेगा और गति को धीरे-धीरे कम करते हुए चंद्रमा की सतह तक पहुंचने के लिए अपने चार थ्रस्टर इंजनों को “रेट्रो फायरिंग” करके उपयोग करना शुरू कर देगा। ये सुनिश्चित करना है कि लैंडर दुर्घटनाग्रस्त न हो, क्योंकि इसमें चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण भी काम करेगा।

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लगभग 6.8 किमी की ऊंचाई पर पहुंचने पर, केवल दो इंजनों का उपयोग किया जाएगा, जबकि दो इंजनों को बंद कर दिया जाएगा, जिसका मकसद लैंडर को रिवर्स थ्रस्ट देना है। लगभग 100-150 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचकर लैंडर अपने सेंसर और कैमरों का उपयोग करके, सतह को स्कैन करके जांच करेगा कि कोई बाधा तो नहीं है और फिर सॉफ्ट-लैंडिंग करने के लिए नीचे उतरना शुरू कर देगा।

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इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने हाल ही में कहा था कि लैंडिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा लैंडर के वेग को 30 किमी की ऊंचाई से अंतिम लैंडिंग तक कम करने की प्रक्रिया और अंतरिक्ष यान को फिर से होरिजेंटल से वर्टिकल दिशा में लाने की क्षमता होगी। उन्होंने कहा, “यही ट्रिक है, जिसका हमें यहां इस्तेमाल करना है।”सॉफ्ट-लैंडिंग के बाद, रोवर अपने एक साइड पैनल का उपयोग करके, लैंडर के अंदर से चंद्रमा की सतह पर उतरेगा, जो रैंप के रूप में कार्य करेगा। लैंडिंग के वक्त लैंडर को, चंद्रमा की सतह के करीब ऑनबोर्ड इंजनों के चालू होने के कारण चंद्रमा पर मौजूद धूल की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

वहां के माहौल का अध्ययन करने के लिए लैंडर और रोवर का मिशन, एक लूनर डे (पृथ्वी के लगभग 14 दिन) का होगा। हालांकि, इसरो अधिकारी एक और लूनर डे तक मिशन की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं।

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