जम्मू: अरनिया में सिंचाई के सीमित साधन,अनोखी तकनीक से होती है धान की खेती

 Jammu news – कूल कलां गुरमीत सिंह ने कहा कि 1947 से जो हमारे बुजुर्ग थे, वो जल्दी कर लेते थे। यहां जो रीजन है पानी का, कि हमारा जो गांव है, जो डिस्ट्रिब्यूटिंग कनाल है, टेल एंड पे है। तो पानी की समस्या आ जाती है लेट में। तो ड्यू टू पानी की वजह से, पानी पहले मिल जाता तो इसकी जो कल्टिवेशन होती है हमारी, फर्स्ट वीक ऑफ अप्रैल, जो हमारी यहां पे नर्सरीज की लगती है, जिसमें 71 है,चौर चैताली है, ये हाइब्रिड बीज हैं।

किसान  तेरन सिंह  ने कहा कि कटाई जल्दी इस वजह से है, क्योंकि ये लगती भी जल्दी है। फर्स्ट जून को लगभग शुरू हो जाता है यहां काम, पैडी लगने का। और जो ये वेराइटी लगी है, ये चौर चैताली है, हाइब्रिड। इसका टाइम होता है 90 दिन। अब 90 दिन हो गया है जून से। तो 90 दिन को बाद कटाई जल्दी शुरू हो जाती है। यहां एक तो चौर चैताली है और दूसरा वो लगती है, बासमति लगती है, थोड़ा लेट लगती है। फिर सरबती होती है। वो भी लगती है। वो इससे जल्दी हो जाती है।

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जम्मू के अरनिया सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास कूल कलां गांव में धान की फसल पूरे इलाके में सबसे पहले काटी जाती है।अरनिया में सिंचाई की सुविधाएं सीमित हैं। लिहाजा यहां खेती की तकनीक अनोखी है।अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास होने की वजह से अरनिया अंतिम शहर है, जहां नहर का पानी पहुंचता है। लिहाजा यहां के लोगों को कम पानी का अधिकतम फायदा उठाने में महारत हासिल है।यहां के किसान खेती के लिए पंजाब से किराए पर हार्वेस्टर लेते हैं। पंजाब खेती में मशीनों के इस्तेमाल की विशेषज्ञता के लिए मशहूर है।यहां धान की तीन किस्में उगाई जाती हैं। इनमें धान की ‘6444’ किस्म लगभग 60 दिनों में ही कटाई के लिए तैयार हो जाती है।अरनिया में खेती न सिर्फ किसानों की आजीविका को सहारा देती है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था में भी योगदान देती है।

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