क्या सपा का साथ छोड़ पलटी मारेंगे जयंत चौधरी? BJP-RLD के बीच फंसा पेंच

लोकसभा चुनाव से पहले INDIA गठबंधन को एक और झटका लगना करीब-करीब तय है.ये बडा झटका पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जमीन से लग सकता है, अब कयास ये लगाए जा रहे है कि RLD नेता जयंत चौधरी आगामी लोकसभा चुनावों मे संभावित गठबंधन के लिए भाजपा के साथ बातचीत कर रहे है. सूत्रों के मुताबिक ये कहा जा रहा हैं कि बीजेपी ने रालोद को उत्तर प्रदेश में चार लोकसभा सीटें कैराना, बागपत, मथुरा और अमरोहा की पेशकश की है और दोनों पार्टियों के बीच बातचीत जारी है.

ये भी कयास लगाए जा रहे कि जयंत चौधरी ने दिल्ली में एक भाजपा नेता से मुलाकात की हैं .और इस मुलाकात के बाद ही अटकलें तेज हो गई कि दोनों दल आम चुनाव से पहले हाथ मिलाने पर विचार कर सकते हैं. सपा नेता अखिलेश यादव ने इस टूट पर सीधे तौर पर चर्चा किए बगैर कहा, ”जयंत चौधरी बहुत सीधे और पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं और वह राजनीति को समझते हैं.मुझे उम्मीद है कि वह किसानों की लड़ाई को कमजोर नहीं होने देंगे.

अखिलेश यादव से नाराजगी
बहरहाल, अखिलेश के साथ सीट शेयरिंग करने वाले जयंत का इंडिया गठबंधन से मोहभंग क्यों हुआ यह सवाल अभी भी बना हुआ. सूत्रों के मुताबिक जयंत, अखिलेश के प्रस्ताव से नाराज हैं. अखिलेश का प्रस्ताव है कि आरएलडी लोकसभा चुनाव 7 सीटों पर लड़े, लेकिन कैराना, मुजफ्फरनगर और बिजनौर की सीटों पर उम्मीदवार का चेहरा  समाजवादी पार्टी से होगा और निशान आरएलडी का.

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क्यों है बीजेपी को जयंत चौधरी की जरूरत?

यूपी की 10 से 12 सीटों पर जाटों का प्रभाव है. करीब 17 फीसदी आबादी जाटों की है. इतना ही नही विधानसभा की करीब 50 सीटों का फैसला भी जाट वोटर्स की करते हैं. इसके अलावा जयंत के आने से बीजेपी किसान आंदोलन से हुई जाटों की नाराजगी को भी दूर करने में कामयाब हो सकती है.

जयंत चौधरी को एनडीए में जाने से क्या होगा लाभ?

जयंत चौधरी के लिए भी बीजेपी के साथ आना फायदे का सौदा साबित हो सकता है. दरअसल, साल 2019 केलोकसभा  में जब यूपी में एसपी-बीएसपी का गठबंधन था तब आरएलडी उसका हिस्सा थी, लेकिन बावजूद इसके उस चुनाव मोदी की आंधी के सामने ये गठबंधन फेल हो गया.

अजित सिंह और जयंत दोनों एसपी और बीएसपी के समर्थन के बाद भी जाट बहुल अपनी मजबूत सीटों पर चुनाव हार गए. इस बार एसपी-बीएसपी साथ नहीं है तो जीत की गुंजाइश भी गठबंधन में कम है. वहीं, राम मंदिर के उदघाटन ने पश्चिमी यूपी ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश का चुनावी मिजाज बदल रखा है.

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