मथुरा: श्रीकृष्णजन्मभूमि और शाही ईदगाह मामले में मुस्लिम पक्ष को लगा HC से बड़ा झटका !

Mathura, Allahabad Court

मथुरा: भारत में कुछ मुद्दे हमेशा गरमाए हुए रहतें हैं, जिन पर जमकर सियासत भी होती है। इनमें प्रमुख मुद्दे हैं जैसे अयोध्या की राम जन्मभूमि और अब मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि। गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा के चर्चित श्रीकृष्णजन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में अहम फैसला सुनाते हुए मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका दिया है।

आपको बता दें, मथुरा की श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद को लेकर मुस्लिम पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी जिसमें उन्होंने हिंदू पक्ष की 18 याचिकाओं को खारिज करने की मांग की थी। जिसमें हिंदू पक्ष ने HC से श्रीकृष्ण जन्मभूमि स्थल पर पूजा के अधिकार की मांग की थी।

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जानें क्या है पूरा मामला ? 

मथुरा के चर्चित श्रीकृष्णजन्मभूमि और शाही ईदगाह मामले में गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिकाओं के खिलाफ मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दिया है। दरअसल, हिंदू पक्ष द्वारा वहां पूजा के अधिकार की मांग वाली याचिका दाखिल की गई थी। इसके बाद मुस्लिम पक्ष ने प्लेसिस ऑफ वर्शिप एक्ट, वक्फ एक्ट, लिमिटेशन एक्ट और स्पेसिफिक पजेशन रिलिफ एक्ट का हवाला देते हुए हिंदू पक्ष की याचिकाओं को खारिज करने की मांग की थी।

जिस पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया। यानी कि हिंदू पक्ष की 18 याचिकाओं पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में अब एक साथ सुनवाई होगी। यह फैसला जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बेंच ने सुनाया है। अगर तकनीकी भाषा में समझा जाए तो हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की ऑर्डर 7 रूल 11 की आपत्ति वाली अर्जी खारिज कर दी। क्योंकि मुस्लिम पक्ष कि याचिकाएं कानून की पोषणीयता को चुनौती दें रही थी।

क्या थी हिंदू पक्ष की दलीलें ?
हिंदू पक्ष द्वारा दलीलें दी गई कि ईदगाह के पूरे ढाई एकड़ के एरिया में भगवान श्रीकृष्ण का गर्भगृह है। मस्जिद कमेटी के पास इस भूमि कोई ऐसा रिकॉर्ड नहीं है, जिससे यह साबित हो सके कि यह भूमि मुस्लिम पक्ष की है। यहां पर मौजूद मंदिर को तोड़कर अवैध मस्जिद का निर्माण किया गया। यह पूरा भवन पुरात्तव विभाग से संरक्षित घोषित है, इसलिए इसमें उपासना स्थल अधिनियम लागू नहीं होता है।

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मुस्लिम पक्षकारों ने रखी थी ये दलील-
मुस्लिम पक्षकारों ने कोर्ट में दलील दी थी कि इस जमीन पर दोनों पक्षों के बीच 1968 में समझौता हुआ था, 60 साल बाद किसी समझौते को गलत बताया जा रहा है। इस लिहाज से यह मुकदमा चलने योग्य ही नहीं है। कानून में कहा जाता है कि 15 अगस्त 1947 के दिन से जिस धार्मिक स्थल की पहचान और प्रकृति जैसी है, वैसी ही बनी रहेगी। यानि उसकी प्रकृति बदली नहीं जाएगी। ऐसा भी कहा जा रहा है कि इस विवाद की सुनवाई वक्फ ट्रिब्यूनल में होनी चाहिए, यह सिविल कोर्ट में सुनवाई वाला मामला है ही नहीं।

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