देशभर में नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। सनातन धर्म के अनुसार, नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा की पूजा का दिन है। इस बार नवरात्रि में चतुर्थी तिथि का क्षय होने के कारण शारदीय नवरात्रि आठ दिन की होगी।
ऐसे में नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा और देवी कुष्मांडा की पूजा की जाएगी। दोनों देवियों की साथ पूजा से अधिक फल मिलेगा। आइए जानें माता चंद्रघंटा और कुष्मांडा की पूजा विधि और कथा।
मां कुष्मांडा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां कुष्मांडा का जन्म दैत्यों का संहार करने के लिए हुआ था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब देवी कुष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से इस सृष्टि की रचना की थी।
जिसके बाद माता को आदिस्वरूपा और आदिशक्ति के नाम से जाना गया। माता सूर्यमंडल के भीतरी लोक में निवास करती हैं, ये क्षमता सभी देवी देवताओं में सिर्फ मां कुष्मांडा के पास है।
Also Read नवरात्रि के दूसरे दिन करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, इस विधि से करें प्रसन्न होंगी मां
जो भक्त इस दिन मां कुष्मांडा की पूजा अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और कष्टों का निवारण होता है।
मां चंद्रघंटा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच लंबे समय तक युद्ध चला। असुरों का स्वामी महिषासुर था और देवताओं के स्वामी इंद्र देव थे।
महिषासुर ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया और स्वर्ग लोक पर राज करने लगा। सभी देवतागंण महिषासुर के इस अत्याचार से परेशान होकर ब्रम्हा, विष्णु और भगवान शिव के शरण में आए।
Also Read नवरात्रि का पहला दिन आज, जानें मां शैलपुत्री की पूजन- विधि, शुभ मुहूर्त
देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं। तथा उन्हें बंधक बनाकर स्वर्ग पर राज स्थापित कर लिया है।
यह सुन ब्रम्हा, विष्णु और भगवान शिव काफी क्रोधित हो उठे। क्रोध के कारण तीनों देवताओं के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई, इस ऊर्जा ने माता का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा का रूप लिया। देवी चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध किया।
मां चंद्रघंटा और देवी कुष्मांडा पूजा विधि
सूर्योदय से पहले नहाकर साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद माता को गंगाजल से स्नान करवाएं और भूरे व नारंगी रंग के वस्त्र पहनाएं।
मां चंद्रघंटा और देवी कुष्मांडा की पूजा से पहले कलश देवता और भगवान गणेश की विधि विधान से पूजा अर्चना करें। इसके बाद मां चंद्रघंटा और देवी कुष्मांडा की पूजा आरंभ करें।
माता को फल-फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर, पान, सुपारी आदि का भोग लगाएं और माता का श्रंगार करें। इसके बाद मां चंद्रघंटा और देवी कुष्मांडा के व्रत कथा का पाठ करें और आरती करें।
मां चंद्रघंटा को केसर की खीर और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए। पंचामृत, चीनी व मिश्री भी मां को अर्पित करनी चाहिए।
मां कुष्मांडा को मालपुए बहुत प्रिय हैं इसीलिए नवरात्रि के चौथे दिन उन्हें मालपुए का भोग लगाया जाता है।