उत्तर प्रदेश में कुलपतियों के 99वें वार्षिक अधिवेशन सत्र को उपराष्ट्रपति ने संबोधित किया

UP News: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, “यह हमारे राष्ट्र के इतिहास का एक गौरवपूर्ण दिन है। भारत माता के एक महान सपूत, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का आज बलिदान दिवस है। उन्होंने उद्घोष किया था — एक विधान, एक निशान और एक प्रधान ही होगा देश में, दो नहीं होंगे। यह उन्होंने 1952 में जम्मू और कश्मीर में अपने अभियान के दौरान कहा था।”उपराष्ट्रपति धनखड़ ने आगे कहा, “अनुच्छेद 370 ने बहुत लंबे समय तक हमें और जम्मू-कश्मीर को नुकसान पहुँचाया। अनुच्छेद 370 और कठोर अनुच्छेद 35A ने लोगों को उनके मौलिक और मानवाधिकारों से वंचित कर दिया। हमारे पास एक दूरदर्शी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं और एक ऐसे गृह मंत्री अमित शाह, जिन्होंने सरदार पटेल की भूमिका को साकार किया। आज हमारे संविधान में अनुच्छेद 370 नहीं है। यह 5 अगस्त 2019 को समाप्त कर दिया गया और इसके विरुद्ध वैधानिक चुनौती 11 दिसंबर 2023 को सर्वोच्च न्यायालय में असफल रही। ऐसे महान सपूत को इस अवसर पर श्रद्धांजलि देना मेरे लिए गौरव की बात है।”

उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर में आयोजित भारतीय विश्वविद्यालय संघ (AIU) द्वारा आयोजित कुलपतियों के 99वें वार्षिक अधिवेशन एवं राष्ट्रीय सम्मेलन (2024–2025) के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “मुझे आपके साथ वह परिवर्तन साझा करना है, जो तीन दशकों के बाद आया और जिसने हमारी शिक्षा प्रणाली का स्वरूप ही बदल दिया। मैं ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’ की बात कर रहा हूँ। जब मैं पश्चिम बंगाल का राज्यपाल था, तब इस नीति के निर्माण में मेरी भी सहभागिता थी। इसमें हज़ारों लोगों के सुझाव शामिल किए गए।”उन्होंने कहा, “यह नीति हमारे सभ्यतागत मूल्यों, भावना और संस्कृति के अनुरूप है। यह भारत के उस शाश्वत विश्वास को दृढ़ता से दोहराती है कि शिक्षा केवल कौशल प्राप्त करने का माध्यम नहीं, बल्कि आत्म-जागरण का साधन है।”
“मैं सदा से मानता आया हूँ कि शिक्षा सबसे बड़ा समतुल्य है। यह समानता लाती है, यह असमानताओं को समाप्त करती है। वास्तव में, यही लोकतंत्र को जीवन देती है।”उत्तर प्रदेश सरकार को बधाई देते हुए उन्होंने कहा, “मैं उत्तर प्रदेश सरकार को बधाई देता हूँ। मुख्यमंत्री द्वारा IT को ‘उद्योग का दर्जा’ देना एक प्रशंसनीय पहल है, जिससे सकारात्मक विकास को गति मिलेगी। साथ ही, स्कूल स्तर की शिक्षा में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की दिशा में जो कार्य हो रहा है, वह अन्य राज्यों के लिए उदाहरण बन रहा है।”
भारत की प्रगति की सराहना करते हुए उन्होंने कहा, “भारत अब अवसरों, स्टार्टअप्स, नवाचार और यूनिकॉर्न्स की धरती बन चुका है। विकास और प्रगति के हर मानक पर भारत निरंतर आगे बढ़ रहा है।विश्वविद्यालयों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, “हमारे विश्वविद्यालय केवल डिग्रियाँ देने के लिए नहीं हैं। उनकी डिग्रियों का महत्व होना चाहिए। ये विचारों के तीर्थ और नवाचार के केंद्र बनें — ऐसे संस्थान जो बड़े बदलाव की उत्पत्ति करें।” उन्होंने कहा कि “इस दिशा में कुलपतियों की विशेष भूमिका है। मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि विश्वविद्यालयों में असहमति, संवाद, चर्चा और वाद-विवाद के लिए खुला वातावरण होना चाहिए। यही मस्तिष्क को सक्रिय करता है। अभिव्यक्ति, वाद-विवाद, अनंत वाद — ये हमारे लोकतंत्र और संस्कृति के अभिन्न तत्व हैं।”उपराष्ट्रपति धनकड ने आगे कहा, “आज वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह स्पष्ट है कि शिक्षा की स्थिति केवल अकादमिक स्तर ही नहीं, बल्कि राष्ट्र की स्थिति भी निर्धारित करती है। भारत को अब केवल पश्चिमी नवाचारों का अनुकरण नहीं करना, बल्कि ज्ञान का वैश्विक केंद्र बनना है।
“हमारे प्राचीन इतिहास की ओर देखें तो ज्ञान, शिक्षा और नवाचार में भारत अग्रणी रहा है। अब समय आ गया है कि भारत ऐसे विश्वस्तरीय संस्थान स्थापित करे जो केवल शिक्षण न करें, बल्कि नवाचार में अग्रणी बनें। ये केवल विषय नहीं हैं — ये हमारे राष्ट्रीय संप्रभुता की गारंटी हैं।”
उपराष्ट्रपति धनकड ने कहा, “हमारे कई संस्थान अब भी ब्राउनफील्ड मॉडल पर कार्य कर रहे हैं। हमें ग्रीनफील्ड संस्थानों की ओर बढ़ना चाहिए ताकि उच्च शिक्षा का संतुलित और न्यायसंगत विस्तार हो सके। फिलहाल महानगरों और टियर-1 शहरों में संस्थानों की अधिकता है, लेकिन कई क्षेत्र अब भी शिक्षा की दृष्टि से उपेक्षित हैं।ऐसे क्षेत्रों में ग्रीनफील्ड विश्वविद्यालय स्थापित किए जाएँ। कुलपति न केवल संरक्षक हैं, बल्कि शिक्षा के व्यवसायीकरण और वस्तुकरण के विरुद्ध मजबूत किले हैं। हमारी एक प्रमुख प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आमजन तक सुलभ, सस्ती और सुलभ रूप से पहुँच सके।”
अपने संबोधन के समापन में उपराष्ट्रपति ने कहा, “AI, जलवायु तकनीक, जलवायु परिवर्तन, क्वांटम विज्ञान और डिजिटल नैतिकता जैसे उभरते क्षेत्रों में उत्कृष्ट संस्थान स्थापित करें — तब भारत नेतृत्व करेगा और अन्य देश उसका अनुसरण करेंगे। यह एक चुनौती है,जिसे हमें स्वीकार करना होगा।”“शिक्षा केवल एक सार्वजनिक उपकार नहीं, बल्कि यह हमारी सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक राष्ट्रीय पूँजी है। यह केवल बुनियादी ढाँचे के विकास से नहीं, बल्कि हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा से भी गहराई से जुड़ी है।मित्रों, आप सब शिक्षाविद हैं, इसलिए मैं अपने विचारों को अधिक स्पष्टता और आलोचनात्मक ढंग से आपके समक्ष रखता हूँ। असंभव विकल्प ही हमारे चरित्र और ताकत को परिभाषित करते हैं।आसान रास्ता अपनाना हमें औसतता, अप्रासंगिकता और फिर महत्वहीनता की ओर ले जाता है।विश्वविद्यालय ऐसे निर्णयों की प्रयोगशालाएँ हों। वे लोगों को ऐसे विचारों और निर्णयों के लिए तैयार करें जो असंभव लगते हों, लेकिन परिवर्तनकारी हों।”इस कार्यक्रम के अवसर पर उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी एवं इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्री सुनील कुमार शर्मा, एमिटी एजुकेशन एंड रिसर्च ग्रुप के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. अशोक के. चौहान, एआईयू के अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पाठक, महासचिव डॉ. (श्रीमती) पंकज मित्तल और अन्य गणमान्य अतिथि भी उपस्थित रहे।

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