अखिलेश ने चला दलित- ओबीसी कार्ड

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अमन पांडेय : लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर उत्तर प्रदेश में सियासी तैयारियां शुरु होने लगी हैं। सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने मिशन 2024 को ध्यान में रखते हुए अपनी नई टीम का ऐलान कर दिया है। अखिलेश ने 64 सदस्यीय कार्याकारिणी के जरिए जातीय समीकरण को ही नहीं बल्कि पार्टी और परिवार को भी साधा है। सपा के मुस्लिम यादव आधार का ख्याल रखते हुए सपा ने बसपा छोड़कर आए अंबेडकरवादी नेताओं को खास तरजीह दी है ताकि दलित ओबीसी समुदाय को साधा जा सके और बीएसपी के साथ साथ बीजेपी वोटों में सेंदमारी की जा रही सके।

अखिलेश ने बढाई टीम की संख्या
रामचरितमानस विवाद के बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने रविवार को अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा करते हुए ज्यादातर पुराने चेहरों पर भरोसा जताया है। पिछली बार 55 सदस्यी कार्यकारिणी थी, जिसे इस बार बढाकर 64 सदस्यीय कर दिया गया है। सपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष और प्रमुख महासचिव पद पर कोई बदलाव नहीं किया गया है। ऐसे ही 10 राष्ट्रीय सचिव से बढ़ाकर 20 कर दिया गया है। वहीं, पहले कार्यकारिणी सदस्यों की संख्या 25 थी, जिसे अब कम करके 21 कर दिया गया है।

दलित ओबीसी पर खास फोकस
समाजवदी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अपना पूरा फोकस दलित ओबिसी वोटों पर रखा है, जिसमें अपने कोर वोटबैंक यादव पर मजबूत पकड़ रखते हुए बाकी पिछड़े और अतिपिछड़े वोटों को साधने के लिहाज से कार्यकारिणी में जगह दी गई है. सपा ने 15 बनाम 85 का फॉर्मूला बनाने के चलते ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 85 फीसदी के करीब दलित-ओबीसी नेताओं को पार्टी संघठन में जगह दी गई है। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद ब्रम्हाण समुदाय से आने वाले किरनमय नंदा को दिया गया है, पर ठाकुर समुदाय से किसी भी नेता को जगह नहीं मिली।

अखिलेश ने सपा का एजेंडा किया साफ
अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के जरिए अपना राजनीतिक एजेंडा साफ कर दिया है। पार्टी संगठन से एक बात तो साफ है कि स्वामी प्रसाद मौर्य और बसपा से आए नेताओं को जिस तरह से तवज्जो दी गई है उससे साफ है कि उनकी नजर मायावती के अतिपिछड़े और दलित वोटबैंक पर है। इतना ही नहीं पासी समुदाय के नेताओं को जिस तरह से सपा संगठन में जगह मिली है उससे साफ जाहिर है कि बसपा से बीजेपी में गए दलित वोटों को अखिलेश यादव अपने सात खींचना चाहते हैं।

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बीजेपी जितना वोट हासिल करने की रणनीति
यूपी में बीजेपी 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करने के टारगेट पर काम कर रही है। ऐसे में बीजेपी के वोटबैंक के बराबर सपा भी अपना सियासी आधार बनाना चाहती है, जिसके चलते ही यादव, मुस्लिम दलित, पिछड़े और अतिपिछड़े वोटबैंक को जोड़ने की रणनीति बनाई है। 2022 के चुनाव में भी जोडे़ रखते हुए उसके बढ़ाने की रणनीति बनाई गई है। इसीलिए अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता का कद को सिर्फ बढ़ाया ही नहीं बल्कि उन्हें जातिगत जनगणना के मुद्दे पर भी आगे बढ़ने के लिए कह दिया है। ऐसे में सूबे में जाती के आस पास ही सपा अपनी सियासी बिसात बिछानी शुरु कर दी है।

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