Autism: हर व्यक्ति ये चाहता है कि उसका बच्चा बड़ा होकर कुछ अच्छा करे। उसे कोई परेशानी न हो और वो स्वस्थ रहे। लेकिन कभी कभी बच्चे जन्म के साथ भी कुछ समस्याओं के साथ पैदा होते हैं। ये बात तो सबको पता होता है कि बच्चों को क्या तकलीफ है वो इस बात को पैरेंट्स से बता नहीं पाते हैं, जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती है वो चीजों समझने लगते हैं और दूसरों से शेयर करने लगते हैं। लेकिन पैरेंट्स की समस्या तो बढ़ जाती है जब उन्हें पता चले कि उनके बच्चे को ऑटिज्म डिसऑर्डर की चपेट में है। तो ऑटिज्म डिसऑर्डर क्या होता है और इसके क्या लक्षण होते हैं, आइए जानते हैं।
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क्या होता है ऑटिज्म डिसऑर्डर?
दरअसल, ऑटिज्म डिसऑर्डर एक प्रकार का मेंटल डिसऑर्डर है। इसकी चपेट में किसी भी उम्र के लोग आ सकते हैं लेकिन ज्यादातर ये समस्या बच्चों में पाई जाती है। इस समस्या के चलते लोगों को सामान्य जिन्दगी जीने में बहुत कठिनाई होती है। हालांकि इस डिसऑर्डर का इलाज तो अभी तक साइंस के पास भी नहीं मौजूद है लेकिन अगर इसकी जानकारी समय पर मिल जाए तो उस पर काफी हद तक कंट्रोल पाया जा सकता है।
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ऑटिज्म के लक्षण और बचाव के उपाय
बात करें ऑटिज्म डिसऑर्डर के लक्षणों की तो ये लक्षण होने पर आपको सावधान होने की आवश्यकता है-अगर आपका बच्चा आपके या किसी परिवार के किसी भी सदस्य के जो पहचान के हों उसके हुलाने पर भी कोई रिएक्ट न करे तो इसे अटेंशन डेफिसिट कहा जाता है, आपके बार-बार बात करने पर भी बच्चे का आंख न मिलाना, 9 महीने के बच्चे को अगर उसका नाम लेकर बुलाया जाए तो भी न पहचान पाए और जवाब न दे, बच्चे का अपना इमोशंस न बता पाना,
1 साल का होने के बावजूद भी बच्चा किसी चीज को कॉपी न कर पाए या कोई खेल न खेल पाए, 15 महीने का होने के बाद भी बच्चा किसी भी चीज में अपना इंस्ट्रेस्ट न बता पाए या कोई रिएक्ट न करना, बच्चे का किसी भी जानवर, सूरज, चांद या किसी भी चीज को देखकर कोई इशारा न करना, 4 साल की उम्र में भी अगर आपका बच्चा कोई कल्पना नहीं कर पा रहा है तो आपको सतर्क होने की जरुरत है। ऐसी स्थिति में हेल्थ एक्सपर्ट्स ये बताते हैं कि अगर बचपन में ही इन लक्षणों के होने पर पैरेंट्स सतर्क हो जाएं तो बच्चों को स्किल सिखाना काफी आसान हो सकता है। ऐसा करने से बच्चे की जिंदगी काफी आसान हो जाती है।