केंद्र सरकार ने संसदीय बोर्ड की सिफारिश के बाद मौजूदा आपराधिक कानूनों को बदलने और उन्हें नए सिरे से पेश करने के लिए तीन विधेयकों को वापस लेने का फैसला कर लिया है।11 अगस्त को भारतीय न्याय संहिता विधेयक, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम विधेयक को लोकसभा में पेश किया गया था।सरकार अब इन तीनों विधेयकों आपराधिक प्रक्रिया संहिता अधिनियम (1898), भारतीय दंड संहिता (1860) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) को बदलना चाहती है। गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में दिए अपने बयान में कहा कि गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति की तरफ से तीनों बिलों को डोमेन विशेषज्ञों और हितधारकों के साथ चर्चा के बाद, बिल में कुछ जरूरी बदलाव की सिफारिशों के बाद वापस लेने का निर्णय लिया गया है।
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उन्होंने कहा कि भारतीय दंड संहिता (1860) में संशोधन करने के लिए आईपीसी को निरस्त करने और रिप्लेस करने के लिए भारतीय न्याय संहिता विधेयक (2023) को 11 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था।इस विधेयक को 18 अगस्त को विभाग-संबंधित गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा गया था।शाह ने कहा कि समिति ने गृह मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय के अधिकारियों, डोमेन विशेषज्ञों और हितधारकों के साथ कई दौर की चर्चा की और 10 नवंबर को सिफारिशों के साथ अपनी रिपोर्ट सौंपी।उन्होंने संसद को बताया कि समिति की सिफारिशों के आधार पर, भारतीय न्याय संहिता विधेयक (2023) में संशोधन का प्रावधान है। भारतीय न्याय संहिता विधेयक (2023) के स्थान पर नया विधेयक पेश करने का प्रस्ताव है।
बिल वापसी को लेकर गृह मंत्री ने इसी तरह के दो बयान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को लेकर भी दिए।बिल को 11 अगस्त को लोकसभा में पेश किए जाने के तुरंत बाद, गृह मंत्री ने अध्यक्ष से बिलों को चर्चा के लिए स्थायी समिति के पास भेजने की सिफारिश की थी। इसके बाद, राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने तीन प्रस्तावित कानूनों को राज्यसभा सचिवालय के अंतर्गत आने वाली समिति के पास भेजा और उसे तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा।
(Source PTI )
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