( प्रदीप कुमार ), ISRO- नए साल के पहले दिन भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ( ISRO ) ने अंतरिक्ष में धमाकेदार आगाज किया है। श्रीहरिकोटा से PSLVC58 के जरिये एक्सपीओसैट (XPoSat) मिशन का सफल प्रक्षेपण हुआ है। यह सैटेलाइट अंतरिक्ष में होने वाले रेडिएशन की स्टडी करेगा और ब्लैक होल के रहस्य का अध्ययन करेगा।
अपने इतिहास में पहली बार, इसरो ने एक कैलेंडर वर्ष के पहले दिन एक अंतरिक्ष मिशन को अंजाम दिया है। इसरो ने अपने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी58 के साथ अपने एक्स-रे पोलारिमीटर उपग्रह एक्सपीओसैट को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया है। आज सुबह अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से एक्सपीओसैट सैटेलाइट लॉन्च किया गया। यह सैटेलाइट अंतरिक्ष में होने वाले रेडिएशन की स्टडी करेगा।
प्रक्षेपण के लिए 25 घंटे की उलटी गिनती रविवार सुबह 8.10 बजे शुरू हुई और आज सुबह 9 बज कर 10 मिनट पर पीएसएलवी-सी58 कोड वाले करीब 260 टन वजनी भारतीय रॉकेट पीएसएलवी-डीएल ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र एसडीएससी के पहले लॉन्च पैड से एक्सपीओसैट के साथ उड़ान भरी। रॉकेट के चौथे चरण को शैक्षणिक संस्थानों, निजी कंपनियों और इसरो के 10 प्रायोगिक पेलोड के साथ एक कक्षीय मंच में बदल दिया गया है। पेलोड में से एक सौर विकिरण और यूवी सूचकांक की तुलना के लिए एलबीएस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी फॉर वुमेन द्वारा निर्मित महिला इंजीनियर सैटेलाइट WUESAT है।
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भारत का पीएसएलवी इस सैटेलाइट को 650 किलोमीटर ऊपर पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया है। ये सैटेलाइट पांच साल तक काम करने के हिसाब से डिजाइन किया गया है। ये एक्स-रे के अहम डेटा जुटाएगा और इससे हमें ब्रह्मांड को बेहतर तरीके समझने में मदद मिलेगी। ये वेधशाला की तरह काम करने वाले दुनिया का दूसरा सैटेलाइट होगा। इससे पहले नासा और इटली की अंतरिक्ष एजेंसी मिल कर 2021 में आईएक्सपीई नाम का सैटेलाइट छोड़ चुके हैं जो वेधशाला का काम करता है।
इसरो के अध्यक्ष एस.सोमनाथ के मुताबिक अंतरिक्ष एजेंसी अपने ईंधन सेल का परीक्षण करेगी, जब भी भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण होगा तो उसे बिजली देने में सबसे सक्षम साबित होगा। इसरो ने बताया कि इस उपग्रह का लक्ष्य सुदूर अंतरिक्ष से आने वाली गहन एक्स-रे का पोलराइजेशन यानी ध्रुवीकरण पता लगाना है। यह किस आकाशीय पिंड से आ रही हैं, यह रहस्य इन किरणों के बारे में काफी जानकारी देते हैं। पूरी दुनिया में एक्स-रे ध्रुवीकरण को जानने का महत्व बढ़ा है। यह पिंड या संरचनाएं ब्लैक होल, न्यूट्रॉन तारे (तारे में विस्फोट के बाद उसके बचे अत्यधिक द्रव्यमान वाले हिस्से), आकाशगंगा के केंद्र में मौजूद नाभिक आदि को समझने में मदद करता है। इससे आकाशीय पिंडों के आकार और विकिरण बनाने की प्रक्रिया को समझने में मदद मिलेगी।
इस मिशन की खासियत ये है कि XPo सैटेलाइट से इसरो अंतरिक्ष से आने वाले एक्स-रे सोर्स का पता लगा सकेगा। ये एक्स-रे किस आकाशीय पिंड से आ रही है, इसके बारे में भी जानकारी मिलेगी। इसी के साथ ‘ब्लैक होल’ की रहस्यमयी दुनिया का अध्ययन करने में भी मदद मिलेगी। इसी के साथ इसरो ने चंद्रयान और सूर्य मिशन के बाद भारत के अब ब्लैक होल्स और सुपरनोवा जैसी सुदूर चीजों के अध्ययन के लिए मिशन सफलता पूर्व लॉन्च कर दिया है।