शिवसेना Vs शिवसेना विवाद: सुप्रीम कोर्ट नबाम रेबिया फैसले की फिलहाल नहीं करेगा समीक्षा

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(अवैस उस्मानी) : सुप्रीम कोर्ट से  उद्धव ठाकरे गुट को फिलहाल राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट नबाम रेबिया फैसले की तुरंत समीक्षा करने से इनकार कर दिया।  सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के पांच जजों के संविधान पीठ के फैसले को सात जजों में भेजने से फिलहाल इंकार किया। सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधानिक पीठ का फैसला। सुप्रीम कोर्ट ने कहा मुख्य मामले की सुनवाई के दौरान पक्षकार इस मुद्दे पर अपनी दलील दी सकते है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा वह मुख्य मामले की सुनवाई 21 फरवरी को करेगा। सुप्रीम कोर्ट की संविधानिक पीठ 2016 के नबाम रेबिया फैसले में कहा था कि अगर स्पीकर को पद से हटाने का प्रस्ताव लंबित है, तो वह MLA की अयोग्यता पर विचार नहीं कर सकते है।                                                                  Maharashtra News
सुप्रीम कोर्ट ने कहा नबाम रेबिया फैसले की समीक्षा कि मांग मुख्य मामले के साथ तय की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तथ्यों के बिना इस मुद्दे को अलग से तय नहीं किया जा सकता, मांग में उठाए गए मुद्दे को केवल मामले की योग्यता के आधार पर तय किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान उद्धव ठाकरे गुट ने नबाम रेबिया मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ के फैसले को सात जजों की पीठ के पास भेजने की मांग किया था। वहीं शिंदे गुट ने नबाम रेबिया को बड़ी पीठ के पास भेजने का विरोध किया था। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के संविधान पीठ ने ही 2016 के अरूणाचल प्रदेश फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा था कि ये बहुत पेचीदा संवैधानिक मसला है, जिसका हमें फैसला करना है। नबाम रेबिया का फैसले में कुछ बदलाव की जरूरत है,  हम यह नहीं कहेंगे कि 2016 का फैसला गलत था, लेकिन हम ये कह रहे हैं कि उसमें कुछ बदलाव कर मजबूत करने की जरूरत है, हालांकि सवाल यह है कि आखिरकार ये बदलाव पांच जजों का पीठ कर सकती है या फिर इसे बड़ी बेंच में भेजा जाना चाहिए।
मुख्य न्यायधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के प्रतिद्वंद्वी गुटों द्वारा दायर मामलों के एक बैच पर आदेश पारित किया। 2022 के राजनीतिक संकट के कारण महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन हुआ था।  दरअसल अरुणाचल प्रदेश मामले में 2016 में दिए फैसले में कहा गया था कि स्पीकर तब तक किसी विधायक के खिलाफ अयोग्यता की कार्रवाई शुरू नहीं कर सकता है, जब खुद उसके खिलाफ पद से हटाए जाने की अर्जी लंबित हो।

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