Mobile Internet Servicesमणिपुर: चार महीने से ज्यादा समय के बाद मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बहाल होने से मणिपुर के लोगों में खुशी है। व्यवसाय में भी फर्क पड़ेगा,भुगतान करने में सुविधा होगी, आज कल तो सब इंटरनेट से भुगतान करते हैं। तो अच्छी ही है। राज, कॉलेज छात्र:जब इंटरनेट नहीं था तो ये एक बड़ी समस्या हुआ करती थी। हमें चीजों को डाउनलोड करने में मदद के लिए किसी और से पूछना पड़ता था। अब फोन पर इंटरनेट वापस आ गया है। इसलिए अब हम फोन पर आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं। व्हाट्सएप पर भी हम आसानी से मैसेज भेज सकते हैं।इंटरनेट की बहाली में लगभग पांच महीने लग गए। मैं पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन दोनों में बहुत खुश हूं। पेशेवर रूप से मैंने बहुत संघर्ष किया है। पहले दो से तीन महीनों में मुझे इंटरनेट नहीं मिल सका और फिर मुझेसरकारी अधिकारियों के पास जाना पड़ा क्योंकि वो मुझे इंटरनेट देते थे।
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एल. तिलोतामा, उपाध्यक्ष, मणिपुर प्रदेश कांग्रेस समिति:पांच महीने बाद अचानक जब इंटरनेट पर लगा प्रतिबंध खुला तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं जिंदा हूं। मैं समाज में वापस आ गई। लेकिन मुझे लगता है कि ये एक निरर्थक प्रतिबंध था क्योंकि कुछ क्षेत्रों में इंटरनेट काम कर रहा है और यहां घाटी में पूर्ण प्रतिबंध था।मुझे नहीं पता कि वो किस प्रकार का प्रतिबंध था। तो अब ये अच्छा है, हम आनंद ले रहे हैं।
मणिपुर में चार महीने से ज्यादा समय के बाद मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बहाल होने पर इंफाल में लोगों ने खुशी जाहिर की।मई के शुरू में मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के बाद राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं थी।लोगों ने बताया कि कैसे वे इस डिजिटल युग में बिना इंटरनेट के जिंदगी जी रहे थे।दुकानदार पवन ने कहा कि मोबाइल इंटरनेट सेवा की बहाली व्यवसाय के लिए अच्छी होगी। क्योंकि ज्यादातर लोग अब ऑनलाइन भुगतान करते हैं।मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने शनिवार सुबह इंटरनेट सेवाओं को फिर से बहाल करने का ऐलान किया।
तीन मई को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने की वजह से 175 से ज्यादा लोग की जान चली गई थी और हजारों लोग घायल हो गए थे। बहुसंख्यक मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था। इसके बाद हिंसा भड़क उठी थी।मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय की संख्या लगभग 53 फीसदी है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। नागा और कुकी सहित आदिवासी समुदाय की आबादी 40 फीसदी है और वे ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं।