सुप्रीम कोर्ट ने 2010 के फैसले को पलटकर गुरुवार को अनुसूचित जाति और जनजातियों को लेकर एक बहुत बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों वाली संवैधानिक पीठ ने यह फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 6:1 के बहुमत से यह फैसला लिया कि SC/ST के भीतर आने वाली पिछड़ी जातियों के लिए अलग से आरक्षण में हिस्सा रखा जा सकता है।
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बता दें कि 2010 में हाई कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई। पंजाब में वाल्मीकि और मजहबी सिख को अनुसूचित जाति और जनजाति आरक्षण में आधा हिस्सा देने वाले कानून की अपील की गई थी लेकिन हाई कोर्ट ने इस कानून पर रोक लगा दी थी। हाई कोर्ट के फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पूरी तरह से पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की मांग पर सहमति जताई है। ऐसा कहा जाता है कि SC/ST में बहुत सी ऐसी जातियां भी हैं जो बहुत ज्यादा पिछड़ी हुई हैं और इनके सशक्तिकरण की बहुत जरूरत है।
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अधिक पिछड़ी जातियों को मिले अवसर
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले के दौरान कहा कि जिन लोगों को आरक्षण दिया जा रहा है उनके पास पिछड़ेपन का कोई न कोई सबूत होना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने कहा कि शिक्षा और नौकरी में कम भागीदारी को आधार बनाया जा सकता है किसी जाति की संख्या अधिक होने को आरक्षण का आधार नहीं बनाया जा सकता है। जो वर्ग अधिक पीड़ित हैं उन्हें अवसर मिलना आवश्यक हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ अनुसूचित जातियों के मुकाबले अधिक पिछड़ी जाति भेदभाव का शिकार होती हैं।
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