दिल्ली(अवैस उस्मानी): मुस्लिम समुदाय में प्रचलित ‘तलाक ए हसन’ प्रथा को चुनौती देने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने दो अलग अलग पीड़ित महिलाओं की याचिका पर उनके पति को पक्षकार बनाया और याचिका पर नोटिस जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तलाक-ए-हसन की संवैधानिक वैधता पर विचार करने से पहले याचिकाकर्ताओं को निजी तौर पर राहत देने पर विचार करेंगे। सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 11 अक्टूबर को होगी।
‘तलाक ए हसन’ को चुनौती देने के मामले में पीड़िता बेनज़ीर हिना आज सुप्रीम कोर्ट में पेश हुई। सुप्रीम कोर्ट ने बेनज़ीर हिना की याचिका पर पति को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानूनी सवाल खुला रख रहे हैं, पर पहले देखना है कि क्या दोनों में आपसी बात से कोई रास्ता निकल सकता है? बेनज़ीर हिना ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि जब मुझको पहला तलाक दिया गया उस समय 7 महीने का बच्चा था, मुझे नोटिस ऐसे आये जैसे किसी मकान में हम किराएदार हो और हमको मकान खाली करने के लिए कह दिया गया है, मेरे टच में 15 ऐसी महिला है जो पीड़ित है, मैं पत्रकार हूँ। सुप्रीम कोर्ट ने बेनज़ीर हिना से पूछा कि क्या आप अपने पति के साथ रहना चाहती है?
बेनज़ीर हिना ने कहा कि हम साथ में रहना चाहते है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेहर की रकम भी काफी कम है? बेनज़ीर ने कहा कि 25 हज़ार का मेहर भी नहीं अदा किया है, यह तलाक देकर एक तरह से ज़िम्मेदारी से भागना चाहते है, शादी में दहेज नही दिया था, लेकिन बाद में वह बोलने लगे कि तुम्हारे पापा ने यह नहीं दिया वह नहीं दिया, मैने अपनी सैलरी से चीजों को अरेंज किया।
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सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि धर्म में यह व्यवस्था दी गई है। जैसे आपके पास खुला है, हम यह देखेंगे कि यह बड़ा मसला है या नहीं। लेकिन आपकी सहायता कैसे मिले, इसी के मद्देनजर हमने नोटिस किया है। बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-हसन पर अहम टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पहली नजर में तलाक-ए-हसन गलत नहीं लगता है। मुस्लिम समुदाय में महिलाओं के पास भी इसका अधिकार है। मुस्लिम महिलाएं ‘खुला’ के जरिए तलाक ले सकती हैं। यह किसी और तरह का एजेंडा बने हम नहीं चाहते। बता दें कि तलाक-ए-हसन के तहत पति 1-1 महीने के अंतराल पर तीन बार मौखिक रूप से या लिखित रूप से तलाक बोलकर निकाह को रद्द कर सकता है।