हिजाब विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिन की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा

(अवैस उस्मानी): कर्नाटक हिजाब विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा। सुप्रीम कोर्ट में 10 दिन चली सुनवाई के बाद जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने हिजाब विवाद पर सुनवाई पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि कर्नाटक हाईकोर्ट का हिजाब पर दिया गया फैसला सही है या नही। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब भी जिनको लिखित दलीलें देनी हो दे सकते हैं। वकील संजय हेगड़े ने सुनवाई की अंत में एक शेर पढ़ते हुए कहा उन्हें है शौक तुम्हें बेपर्दा देखने का, तुम्हें शर्म आती हो तो अपनी आंखों पर हथेलियां रख लो।          Karnataka news

मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम छात्रा की ओर से दुष्यंत दवे ने जवाबी पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल के द्वारा PFI का मुद्दा उठाया, जिसमे कहा गया था कि PFI ने सोशल मीडिया पर हिजाब पहनने के लिए कैंपेन चलाया। वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि सरकार सर्कुलर में कहीं भी PFI का जिक्र नहीं था लेकिन सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका जिक्र किया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का PFI को लेकर पूरे इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में हेडलाइन के बन गई। वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि कल ही जस्टिस केएम जोसेफ ने बताया है कि किस तरह मीडिया नफरत फैला रहा है। हालांकि जस्टिस गुप्ता ने वकील दुष्यंत दवे से कहा कि वह तो यह बता रहे थे कि पूरी घटना कैसे हुई ? वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि लेकिन आप बाहर की चीजो को मामले में नहीं ला सकते। जस्टिस गुप्ता ने पूछा क्या आपका स्टैंड है कि 2021-22 से पहले कोई ड्रेस नहीं था। दवे ने जवाब में कहा कि हमारा मामला यह है कि हिजाब पर कभी आपत्ति नहीं हुई। हमारा मसला स्वैच्छिक प्रथा है।                        Karnataka news

मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस गुप्ता ने कहा कि यहां मसला ड्रेस का है। जिसपर हम चर्चा कर रहे हैं दवे ने कहा कि ड्रेस अनिवार्य नहीं था। इस तरह हिजाब पर बैन नहीं लगाया जा सकता। जस्टिस धूलिया ने कहा कि मुद्दा यह नहीं है कि छात्र इसे पहने हुए हैं या नहीं। यहां मुद्दा यह है कि आप हिजाब की अनुमति दे रहे हैं या नही। वहीं जस्टिस गुप्ता ने कहा कि सरकार का हिजाब को लेकर तर्क है कि यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। दवे ने कहा यह एक व्यक्तिगत पसंद है। इसलिए आवश्यक धार्मिक प्रथा के मसले को बहुत पहले ही खारिज कर दिया गया था। कुछ लोग अधिक धार्मिक होते हैं और हिजाब पहनते हैं। उन्होंने कहा कि हिजाब पर रोक को पिछले दरवाजे से लाया गया था। जस्टिस धूलिया ने कहा लेकिन याचिकाकर्ता का कहना है कि यह जरूरी है और यह उनकी प्रयरे भी है।

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याचिकाकर्ता की तरफ से वकील अहमदी ने कहा कि सरकार ने अपनी पूरी दलीलों में कही नहीं बता पाई कि हिजाब पहनने के कारण किसके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ? इसको लेकर सरकार द्वारा कुछ भी नहीं दिखाया गया है कि जब कोई लड़की हिजाब पहनती है तो कोई दूसरा क्यों भड़क? उन्होंने कहा कि सरकार का यह सुझाव कि यह सार्वजनिक व्यवस्था का मुद्दा है, यह बिल्कुल बचकाना है।

इससे पहले कर्नाटक सरकार ने कल बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट को अवगत कराया कि राज्य सरकार ने हिजाब प्रतिबंध विवाद में किसी भी ‘धार्मिक पहलू’ को नहीं छुआ है और यह प्रतिबंध केवल कक्षा तक सीमित है। राज्य सरकार ने यह भी कहा कि यहां तक कि कक्षा के बाहर स्कूल परिसरों में भी हिजाब पर प्रतिबंध नहीं है। राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने जोर देकर कहा कि राज्य ने केवल यह कहा है कि शैक्षणिक संस्थान छात्रों के लिए वर्दी निर्धारित कर सकते हैं, जिसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। कर्नाटक के महाधिवक्ता प्रभुलिंग के. नवदगी ने जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ को बताया कि फ्रांस जैसे देशों ने हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया है और वहां की महिलाएं इससे कम इस्लामी नहीं हो गई हैं।

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