Supreme Court: देश की राजनीति में वोट के बदले नोट मामले में 26 साल पुराने फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है। अब सांसद या विधायक रिश्वत लेकर सदन में भाषण देते हैं या वोट देते हैं तो उन पर कोर्ट में आपराधिक मामला चलाया जा सकता है।
Supreme Court ने पलटा वोट के बदले नोट मामले में सालों पुराना फैसला
वोट के बदले नोट मामले में 26 साल पुराने फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है। इसके तहत अब अगर भ्रष्टाचार करते हुए कोई विधायक या सांसद पाया जाता है तो उसके खिलाफ मुकदमा किया जा सकेगा ।”
सुप्रीम कोर्ट ने पीवी नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले में आए फैसले को खारिज कर दिया है। अपनी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 26 साल पुराने उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें वोट के बदले नोट के तहत सांसदों/जनप्रतिनिधियों को किसी भी कानूनी कार्रवाई से राहत मिली हुई थी। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने इस मामले पर सर्वसम्मति से ये फैसला सुनाया है। अब अगर सांसद पैसे लेकर सदन में भाषण या वोट देते हैं तो उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से मामले की सुनवाई के दौरान संविधान के अनुच्छेद 105 का हवाला दिया गया। कोर्ट ने कहा कि किसी को घूसखोरी की कोई छूट नहीं है। रिश्वत लेकर वोट देने पर अभियोजन को छूट नहीं दी जाएगी। कोर्ट के इस फैसले ने राजनीतिक और कानूनी बहस छेड़ दी है। कोर्ट के इस फैसले के बाद कानूनी मामलों के जानकारों ने प्रतिक्रिया दी है।
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सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि जनप्रतिनिधियों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देती है। साल 1998 में 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने 3-2 के बहुमत से तय किया था कि वोट के बदले नोट जैसे मामले में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। अब यह फैसला पलट चुका है। यानी साफ है यदि कोई भी सांसद या विधायक घूसखोरी या पैसे और गिफ्ट लेकर सदन के अंदर सवाल पूछा और ये कानूनी तौर पर साबित हुआ तो उसके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया की जा सकती है।